एक व्यक्ति जो फेसबुकपर मेरा लेख पढते थे, एक दिवस मुझसे मिलने आए, उन्होंने अध्यात्म में प्रगति करने हेतु मुझसे कुछ तथ्य पूछे, मैंने भी उन्हें उनके लिए जो आवश्यक था, सब कुछ बताया। उसी संध्या उनका मेरे पास पत्र आता है उसमें उन्होंने मुझे ‘सखी’ ऐसा सम्बोधन कृतज्ञता व्यक्त की थी ! मैंने उन्हें कहा “न मैं कृष्ण हूं और न आपकी भक्ति गोप समान है और आज जब वासना रूपी भस्मासुर सर्वत्र मुंह खोल कर अपने शिकार हेतु घूम रहा है ऐसेमें आपको यदि मुझसे मार्गदर्शन चाहिए तो आपके लिए मेरे प्रति दो ही भाव कल्याणकारी है एक मातृत्व भाव और दूसरा वात्सल्य भाव, आपको इन दोनोंमें से एकका चुनाव करना होगा ।”
एक वयस्क स्त्री और पुरुषमें मित्रता इत्यादि नहीं हो सकती यह सब व्यर्थकी बातें है और आज अंतर्जालके (इंटरनेट) इस कालमें अनेक गृहस्थकी बसी बसाई गृहस्थी इस कारण भी टूटने लगी है ! अतः पुरुषने परस्त्रीके प्रति और स्त्रीने परपुरुषके प्रति अपने दृष्टिकोणमें सदैव सतर्कता रखनी चाहिए अन्यथा वासना रूपी असुर कब किसको निगल लेगा, यह कहना कठिन है !
साख्य भक्ति करनेवालोंमें वासनाका प्राबल्य नगण्य हो तो ही वे उसमें यशस्वी होते हैं अन्यथा वासनाके चक्रव्यूहमें फंसकर पृथ्वीपर ही नरक भोगते हैं !
मैंने सदैव ही इस संसारके प्रति वात्सल्य भाव रखा है क्योंकि यह मेरे लिए अधिक सहज होता है ! वैसे ही आप भी अपने भावका समय रहते ही चुनाव कर लें ! -तनुजा ठाकुर
Leave a Reply