धर्मयुद्धमें कूटनीति आवश्यक


यदि शत्रु धूर्ततापर उतर आए तो धर्मयुद्धमें कूटनीति आवश्यक होती है ! पढें, इस संबंधमें एक प्रेरक कथा –

एक कथा अनुसार भगवान श्रीरामकी भक्ति और हनुमानकी कूटनीतिने किया रावणका सर्वनाश !
लंका-युद्धमें ब्रह्माजीने श्रीरामसे रावण वधके लिए चंडी देवीका पूजन कर देवीको प्रसन्न करनेको कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमलकी व्यवस्था की गई । वहीं दूसरी ओर रावणने भी अमरताके लोभमें विजय कामनासे चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देवने पवन देवके माध्यमसे श्रीरामके पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्रीमें पूजा स्थलसे एक नीलकमल रावणकी मायावी शक्तिसे लुप्त हो गया और रामका संकल्प टूटता-सा दिखाई देने लगा। भय इस बातका था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं । दुर्लभ नीलकमलकी व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान रामको सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंज लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीरसे एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालनेके लिए तैयार हुए, तब देवीने प्रकट हो, हाथ पकडकर कहा- ‘राम, मैं प्रसन्न हूं’ और विजयश्रीका आशीर्वाद दिया। वहीं रावणके चंडी पाठमें यज्ञ कर रहे ब्राह्मणोंकी सेवामें ब्राह्मण बालकका रूप धर कर हनुमानजी सेवामें जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणोंने हनुमानजीसे वर मांगनेको कहा। इसपर हनुमानजीने विनम्रतापूर्वक कहा – प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्रसे यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से परिवर्तित कर दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्यको समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्रमें जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चरित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी अर्थात प्राणियोंकी पीडा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियोंको पीडित करनेवाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावणका सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराजने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावणके यज्ञकी दिशा ही परिवर्तित कर दी।



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