जीवनमुक्त होकर ही गुरुके प्रति खरी कृतज्ञता हो सकती है व्यक्त


माता–पिता हमें जन्म देकर हमारा लालन-पालन करते हैं और उनका ऋण हम उनकी सात जन्म सेवा कर भी चुका नहीं सकते । सद्गुरु तो हमें जन्म और मृत्युके चक्रसे निकालकर ईश्वरसे साक्षात्कार कराते हैं, ऐसे सद्गुरुके ऋणसे कोई शिष्य भला कभी उऋण हो सकता है क्या ? मात्र गुरुके दिशा-निर्देशनमें साधना कर, जीवनमुक्त होकर ही हम उनके प्रति अपनी खरी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं । और श्रीगुरुको भी ऐसे कृतिशील कृतज्ञ शिष्य ही प्रिय होते हैं एवं वे अपनी कृपादृष्टिका वर्षाव कर, अपने ऐसे सत्शिष्यका कल्याण करते हैं – तनुजा ठाकुर



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