संत और गुरु में क्या अंतर होता है ?


sant5

संतोंमें भी स्तर होते हैं , गुरुपद के संत (७० प्रतिशत  आध्यात्मिक स्तर) से शक्तिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं, सद्गुरु पदके संत (८०% आध्यात्मिक स्तर) उसके अगले स्तरके होते हैं और उनसे आनंदके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं  और वह शक्तिके स्पंदनसे अधिक सूक्ष्म  होते हैं और सबसे ऊपर परात्पर पदके संत (९० % आध्यात्मिक स्तर) के होते हैं उनसे शांतिके स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं।

सभी गुरु संत होते हैं, परन्तु सभी संत गुरु नहीं होते। गुरु पद एक कठिन पद होता है और कई बार संत इस पदको स्वीकार करने को इच्छुक नहीं होते और वे आत्मानंदमें रत रहना पसंद करते हैं। ऐसे संतोके मात्र अस्तित्वसे ब्रह्माण्डकी सात्त्विकता बनी रहती  है। कुछ संत भक्तोंके अध्यात्मिक कष्ट दूर तो करते हैं, पर किसी को शिष्य स्वीकार कर उसे मोक्ष तक ले जानेको इच्छुक नहीं होते क्योंकि संतोंको पता होता है मात्र शिष्य बनानेसे काम समाप्त नहीं होता, शिष्य जब तक मोक्षको प्राप्त नहीं होता, तब तक वह उत्तरदायित्व गुरुका होता है अतः कई गुरु शिष्य बनाते समय बहुत सतर्क रहते हैं और योग्य पात्रको ही शिष्य स्वीकार करते हैं। मात्र गुरु पद स्वीकार करनेके पश्चात् संतोकी प्रगति मोक्षकी द्रुत गतिसे होती है।

ईश्वर प्रत्येक संतको गुरुके लिए नहीं चुनते, जिनमे दूसरोंको सिखानेकी विशेष क्षमता हो, मां समान मातृत्व, क्षमाशीलता और प्रेम हो, उसे ही सद्गुरु पद पर आसीन करते हैं – तनुजा ठाकुर



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution