ईश्वरकी कृपा बहिर्मुख व्यक्तिको नहीं अंतर्मुख प्रवृत्तिके साधकको प्राप्त होती है


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हमसे कोई चूक हो और हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते और उसके लिए या तो दूसरे को दोषी टहराते हैं या मैं कैसे दोषी नहीं हूं इसके पक्षमें अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं तो समझें कि हमारी प्रवृत्ति बहिर्मुख है ! हमसे कोई चूक हो और हम विनम्रतासे उसे स्वीकार कर उस चूक मार्जन हेतु प्रायश्चित लेते हैं और उस चूकके लिए उत्तरदाई दोषको दूर करने हेतु गंभीरतासे प्रयास करते हैं साथ ही चूक बताने वालेके प्रति हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और भविष्यमें इस प्रकार की चूक न हों इस हेतु प्रयास करते हैं तो समझें कि हमारी प्रवृत्ति अंतर्मुख हैं ! साधककी प्रवृत्ति अंतर्मुख होती है और एक सामान्य व्यक्तिकी प्रवृत्ति बहिर्मुख होती है ! ईश्वरकी कृपा बहिर्मुख व्यक्तिको नहीं अंतर्मुख प्रवृत्तिके साधकको प्राप्त होती है -तनुजा ठाकुर



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