धर्मधारा


प्रजाको प्रसन्न रखना राजाका धर्म होता है; किन्तु प्रजा, समाजद्रोही, धर्मद्रोही और राष्ट्रद्रोही हो तो राजा उसे कैसे प्रसन्न रख सकता है ? वस्तुत: प्रजाको राजा और राजाको प्रजा उसके प्रवृत्ति अनुरूप ही मिलती है ।



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