मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परन्तु साधना पथ पर अग्रसर साधक एकान्तिक जीवन क्यों जीने लगता है ?


६०% अध्यात्मिक स्तरके नीचे वाले व्यक्तिके विषय- वासनाके संस्कार तीव्र होते हैं और उनकी पूर्ति हेतु सामाजिक जीवनकी आवश्यकता होती है । ६०% के ऊपरके स्तर पर साधक मनोवृत्तिका होने के कारण एवं विषय- वासनाके संस्कार कम होने के कारण और साधनारत वह धीर-धीरे आतमानन्द में लीन रहने लगता है ऐसे में उसे एकान्तिक जीवन अधिक आनंददायी प्रतीत होता है और ऐसे साधक को ही खरे गुरु सन्यास देते हैं – तनुजा ठाकुर



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