अ.हिन्दू धर्ममें हम भोजन करनेसे पूर्व प्रार्थना करते हैं और प्रार्थनाके पश्चात् वह आहार, महाप्रसाद बन जाता है, ऐसेमें उसे छूरी, कांटे-चम्मचसे ग्रहण करना, उसकी अवमानना करने समान है। अध्यात्मशास्त्र अनुसार भी पांचों अंगुलियोंके पोरोंसे प्रवाहित होनेवाले चैतन्य, हाथसे भोजन करनेपर उसमें समाविष्ट होनेके कारण, वह चैतन्ययुक्त एवं सुपाच्य हो जाता है। अध्यात्मशास्त्र आधारित संस्कृति दैवी होती है और बाह्य प्रदर्शन करनेवाली संस्कृति आसुरी होती है; अतः पाश्चात्य पद्धतिसे भोजन ग्रहण करना आसुरी संस्कृतिका द्योतक है।
आ. भोजन, बॉन चाइनाके बर्तनमें करनेसे महाप्रसादका चैतन्य नष्ट हो जाता है; क्योंकि उसमें गोवंशकी अस्थियां मिश्रित होती हैं अतः यथासम्भव बोन-चाइनाके बर्तनोंका परित्याग करना चाहिए एवं उसमें भोजन करना टालना चाहिए – तनुजा ठाकुर (क्रमश:)
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