अ. हमारी विचारप्रक्रिया सात्त्विक हो तथा विवेक जागृत रहे इस हेतु हम जिस वास्तुमें रहते हैं, उसका सात्त्विक होना भी अति आवश्यक होता है । इसीलिए प्रतिदिन स्नानके पश्चात् सात्त्विक वस्त्र एवं तिलक धारण कर वास्तु शुद्धि अवश्य करनी चाहिए । वर्तमान कालमें अधिकांश घर, वास्तुशास्त्र अनुसार नहीं बने होते हैं, धर्माचरण एवं योग्य साधनाके अभावमें सभीके घरोंमें पितृ दोष है तथा राजसिक एवं तामसिक जीवन प्रणाली व्यतीत करनेके कारण वास्तुमें अशुद्धियोंका प्रमाण बहुत अधिक होता है; फलस्वरूप घरमें होनेवाले आध्यात्मिक कष्टोंकी तीव्रता स्वतः ही बढ जाती है । वास्तु शुद्ध रहे, इस हेतु नियमित स्नानके पश्चात् घरके पुरुष विशेषकर मुखिया, वास्तु शुद्धि करनेके पश्चात् ही पूजा इत्यादि नित्य कर्म करें (वास्तुमें यदि आध्यात्मिक कष्टकी तीव्रता अधिक हो तो स्त्रियोंको वास्तु-शुद्धिसे कष्ट होनेकी आशंका होती है; किन्तु यदि पुरुष किसी करणवश न कर सके तो स्त्री भी यह कर सकती हैं) । ध्यान रहे, घरके वास्तुका शुद्ध रहना व्यावहारिक उन्नतिके लिए ही नहीं अपितु साधना हेतु भी पूरक एवं आवश्यक होता है ।
आ. वास्तु शुद्धि हेतु अपने घरमें देसी गायका पालन करें, उसके गोमूत्रसे सम्पूर्ण घरमें छिडकाव करें, धूप एवं गूगलको देसी गायके कंडेमें जलाकर उसके धुएंको सर्वत्र दिखाएं । घरमें नित्य किसी संतकी वाणीमें नामजपकी ध्वनिचाक्रिका लगाएं, नामजप करें, संतका घरमें पदार्पण हो, इस हेतु अपनी भक्ति एवं भाव बढायें । स्वच्छता रखें, प्रसन्न रहे एवं आपका घर आपके आराध्यका मंदिर है, इस भावसे घरकी देखभाल करते हुए रहें – तनुजा ठाकुर (क्रमश:)
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