सत्संग हमें नामजपको सातत्यसे करने हेतु आवश्यक शक्ति प्रदान करता है।


साप्ताहिक सत्संगमें जानेका प्रयास करें, सत्संगमें जानेसे नामजप करने हेतु, आवश्यक शक्ति मिलती है और जैसे बिजलीके नहीं रहनेपर इन्वर्टर बिजलीकी भरपाई कर, हमारे उपकरणको चलाता है, उसी प्रकार सत्संगमें प्राप्त हुई सात्त्विकताका प्रभाव एक सप्ताह तक रहता है और हमें नामजप करनेकी शक्ति मिलती है। कलियुगके लिए सर्वोत्तम साधना मार्ग ईश्वरके नामका जप करना है। यद्यपि यह सुननेमें अत्यंत सरल लगता है परन्तु इसे अखंड करनेके लिए हमारा आध्यात्मिक स्तर कमसे कम ४५% तो अवश्य ही होना चाहिए। वर्तमान समयमें साधारण व्यक्तियोंका आध्यात्मिक स्तर २० से २५% है और ऐसेमें नामजप करना कठिन होता है। वातावरणमें रज और तमके स्पंदनका प्रभाव अत्यधिक होनेके कारण भी मन एकाग्र नहीं हो पाता और नामजपमें सातत्य नहीं रह पाता। सत्संगमें जानेसे नामजपमें निरंतरता बनाने में किस प्रकार सहायता मिलती है, इस संदर्भमें एक अनुभूति देखेंगे।

१९९९ में जब मैं झारखण्डके धनबाद जिलेमें धर्मप्रसारकी सेवा कर रही थी, तो उस दौरान दो स्त्रियां एक प्रवचनमें आई थीं। दोनों सखी थीं।
सत्संग सुननेके पश्चात दोनोंने नामजप आरम्भ भी किया । तीन महीनेके पश्चात् जब मैं दोनोंसे एक साथ मिली, तो पता चला कि एक स्त्री, जो वहां आयोजित साप्ताहिक सत्संगमें नियमित जाने लगी थी, उनका नामजप अच्छेसे होने लगा था, और दूसरी स्त्रीका नामजप एक महीनेके पश्चात बंद हो गया था। दोनों ही स्त्री समस्तरी थीं, अर्थात् दोनोंका अध्यात्मिक स्तर ४० प्रतिशत था। ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरके नीचे नामजप अखंड होने हेतु, सत्संगमें अवश्य जाना चाहिए अन्यथा नामजप करना और उसके प्रमाणको बढाना कठिन होता है, यह ध्यानमें रखना चाहिए।  साप्ताहिक सत्संगमें नियमित जाते रहनेसे आवश्यक चैतन्य हमें प्राप्त होता रहता है और हमारी आध्यात्मिक प्रगति हेतु पोषक शक्ति हमें प्राप्त होती रहती है -तनुजा ठाकुर



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