धर्मधारा


वर्तमान समय युवा वर्गमें विशेषकर आधुनिकतामें लिप्त रहनेवाले युवाओंमें मनोरोग एक महामारीके रूपमें फैल रहा है । इतना ही नहीं, प्रतिदिन कहीं न कहीं युवाओंद्वारा आत्महत्याके समाचार प्रकाशित होते रहते हैं, इनमेंसे अनेक तो उच्च शिक्षित होते हैं या ख्यातिप्राप्त विद्यालयों या महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयोंमें शिक्षा ग्रहण कर रहे होते हैं । इनमेंसे अनेक अपनी समस्याओंपर योग्य उपाय न निकाल पानेके कारण या अपनी असफलताओंसे या अपेक्षित सफलता न मिलनेसे जो तनाव होता है, उसके कारण अपना जीवन होम करनेकी मूर्खता करते हैं । यदि विद्यार्थी जीवनमें समस्याओंका निराकरण कैसे निकाला जाए ?, असफलताओंको कैसे स्वीकार करें ?, अति महत्त्वाकांक्षाको कैसे नियन्त्रित करें ?, जैसी प्रक्रियाएं सिखाई जाएं तो युवा आत्महत्या नहीं करेंगे; किन्तु आजकी शिक्षण व्यवस्था मात्र धनप्राप्ति हेतु युवा मनको उद्युक्त करती है, उसके व्यक्तित्वके भीतर दिव्य गुणोंको आत्मसात करनेकी प्रक्रिया नहीं सिखाती है, ऐसेमें युवाओंका छोटी-छोटी बातोंपर आत्महत्या कर लेना सामान्य सी बात होती जा रही है, जो सभीके लिए चिन्ताका विषय है ।



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