जागरणका अर्थ समझकर उसके यथार्थ स्वरुपमें मनानेका प्रयास करे !


mata ka jagrata

उत्तर भारतीयोंके मंदिरोंमें चाहे वे भारतमें हो ये विदेशोंमें, उनके यहां माताके जागरणमें उपस्थित रहनेका अवसर मिला | इस मध्य मैंने जो अनुभव किया उसे आपके समक्ष प्रस्तुत करनेकी धृष्टता इस दृष्टिसे कर रही हूं कि जिससे इसे पढनेवालोंका विवेक जागृत हों और वे  प्रथमत:, माताके जागरणमें भक्ति गीतोंकी ध्वनि इतनी कर्णकर्कश होती है कि वहां देवीमांके आनेकी संभावना तो नगण्य हो जाती है, ऐसे शोरयुक्त वातावरणमें असुर अवश्य आ जाते होंगे | यदि कोई अंतर्मुखी साधक ऐसे जागरणमें बैठ जाए तो निश्चित ही अगले दिवस जागरणके मध्य होनेवाले ध्वनि प्रदूषणसे सिरकी वेदनाको दूर करने हेतु पीडानाशक औषधि अवश्य लेनी पडेगी | अनेक जागरणोंमें चित्रपटके संगीतपर और अनेक बार पाश्चात्य संगीतपर भजन गानेकी ‘नौटंकी’की जाती है | गानेवालोंमें भी भावका प्रमाण तो नगण्य होता है, अपने अहंका प्रदर्शन अधिक होता है | सर्वत्र ढोंग दिखाई देता है, स्त्रियां ऐसे सज-धजके आती हैं जैसे मानो किसी ‘फैशन शो’में आई हों | महाप्रसादके समय अधिक भीड होती है, अर्ध रात्रि होते-होते जिन्हें अपने गीतोंका प्रदर्शन करना हो वे ही मात्र रह जाते हैं | कुछ तो भजनपर ऐसे नृत्य करते हैं कि उन्हें देखकर प्रतीत होगा कि इनके समान कोई भक्त ही नहीं; परन्तु उस तथाकथित भक्तकी भक्ति कैमरापर अपने भक्तिको प्रदार्षित करने तक सीमित होती है  ! जागरणका यथार्थ अर्थको ही लुप्त करनेवाले, ऐसे जागरण करने एवं करानेवालोंको माता रानीकी कभी कृपा हो सकती है क्या, किंचित् सोचें ! -तनुजा ठाकुर



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