धर्मप्रसार हेतु ईश्वरके निराले माध्यम


सूक्ष्म इन्द्रियोंकी प्रक्रिया सीखने हेतु ९५ % प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो हमारे ‘जागृत भव’के सदस्य नहीं है; किन्तु हमारे सत्संगके नियमित श्रोता है या लेखोंको नियमित पढते हैं । ६० % व्यक्ति ऐसे हैं, जो हमारे भ्रमणभाषमें ‘जागृत भव’के अतिरिक्त ३०० अन्य ‘व्हाट्सएप’ गुटके सदस्योंमेंसे भी नहीं होते हैं, इसे यह सिद्ध होता है कि हमारे लेखोंको पढनेवाले अनेक सदस्य हमारे सन्देशोंको अन्य लोगोंमें प्रसारित कर रहे हैं, ऐसे सभी ज्ञात एवं अज्ञात सदस्योंके प्रति हम ‘वैदिक उपासना पीठ’की ओरसे मनसे आभार व्यक्त करते हैं । ईश्वर आप सभीको राष्ट्र और धर्मके कार्य हेतु इसी प्रकार उन्मुख कर अगले-अगले चरणोंमें ले जाएं और उनकी कृपा आपपर हो, हम तो मात्र यही प्रार्थना भगवानसे कर आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं ।
  सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंके आघातके कारण अब बाहर जाकर प्रसार करना मेरे लिए कठिन होता जा रहा है, अतः २०१५ से ही, मैं अब प्रसार कैसे करूं यह सोचने लगी थी; किन्तु तभी ईश्वरीय नियोजन अनुसार ‘व्हाट्सएप’ एक बहुत सुन्दर प्रसार माध्यम बनकर मेरे समक्ष आ गया और आज विश्वके इतने लोग प्रतिदिन सत्संग सुनते है या हमारे लेखों एवं वैदिक उपासना पत्रिकाको पढते हैं, वस्तुत: मैं भ्रमण कर भी इतना प्रसार एक दिन कभी नहीं कर सकती थी ! ‘व्हाट्सएप’के माध्यमसे साधक निर्माण होने लगेंगे, इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी; किन्तु ईश्वर कुछ भी करनेमें समर्थ होते हैं, मात्र आपमें समष्टि कार्य हेतु तडप होनी चाहिए । इस अपंग शरीरसे भी ईश्वर कुछ सेवा करवाकर ले रहे हैं, यह जानकर मन कृतज्ञतासे भर उठता है । – तनुजा ठाकुर (३.८.२०१८)



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