ध्यानावस्था एवं भावावस्थाका भेद


१. ध्यानमें नामजप अधिक नहीं कर सकता हूं, क्या यह ठीक है ? – अल्पेश, सूरत, गुजरात
ध्यानमें मन निर्विचार हो जाता है, इसलिए यदि ध्यानमें मन निर्विचार हो जाए तो यह सर्वोत्तम अवस्था होती है, वस्तुत एकाग्रतापूर्वक नामजप करनेसे मन स्वतः ही ध्यानस्थ होकर निर्विचार होने लगता है और यही तो नामजपका उद्देश्य होता है । यदि मन निर्विचार हो जाए तो ध्यानमें प्रयत्नपूर्वक नामजप करनेकी आवश्यकता नहीं होती है ।


२. ध्यानमें मैं ईश्वरसे संवाद करता हूं, क्या यह ठीक है ?
जब मनसे ईश्वरसे संवाद साधता है तो वह भावकी अवस्था होती है, ध्यानकी नहीं ! ध्यानमें मन निर्विचार होनेसे ईश्वरका भी बोध नहीं रहता है ! ईश्वरसे संवाद साधना, यह भक्तियोग अन्तर्गत आता है; किन्तु इसके लिए भी मनका एकाग्र होना अति आवश्यक होता है ।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution