आजकल अनेक लोग कहते है कि ध्यान करते समय उनका मन एकाग्र नहीं हो पाता है एवं ऐसा क्यों हो रहा है ? यह उन्हें समझमें नहीं आता है । ध्यानकी साधना हेतु तीन घटकोंका होना अति आवश्यक है ।
ध्यान हेतु प्रथम घटक हैं – जिस वास्तुमें हम ध्यान करते हैं वह सात्त्विक एवं शान्त होना चाहिए । आजकल भारतमें ५० से ७०% घर प्रेतबाधित (भूतहा) होते हैं एवं विदेशोंमें १००% घर ‘भूतहा’ होते हैं, ऐसे अनिष्ट वातावरणमें ध्यान लगाना अति कठिन होता है ।
ध्यान हेतु दूसरा घटक है – ध्यानकके अभ्यास हेतु न्यूनतम आध्यात्मिक स्तर ५०% होना चाहिए एवं ध्यानमें हमारा मन एकाग्र हो इस हेतु हमारा आध्यात्मिक स्तर ६० % से अधिक होना चाहिए ! ५०% आध्यात्मिक स्तरके नीचे, मनमें विषय-वासनाओंके संस्कार अति तीव्र होते हैं, ऐसेमें मन एकाग्र करते समय, उन संस्कार केन्द्रोंके स्पन्दन ध्यान करनेमें बाधा उत्पन्न करते हैं ।
ध्यान हेतु तीसरा घटक है – ध्यानकर्ताके मन एवं बुद्धिपर सूक्ष्म काला आवरण नहीं होना चाहिए । आज १००% घरोंमें पितृदोष है एवं धर्माचरण तथा साधनाके अभावमें ५०% सामान्य व्यक्तिको सामान्यसे मध्यम स्तर स्तरका एवं शेष ५०% को मध्यमसे तीव्र स्तरका अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट है तथा ९०% अच्छे साधकोंको सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियां उनकी साधनामें अडचनें निर्माण करने हेतु भिन्न प्रकारके कष्ट दे रही हैं, ऐसेमें चाहे सामान्य व्यक्ति हो या साधक हो, उसका ध्यान कहांसे लग पाएगा ? ऐसे आपातकालमें नेत्र खोलकर भावपूर्वक नामजप करना, यह साधनाका सर्वश्रेष्ठ उपाय है । – तनुजा ठाकुर
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