स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रियाको आरम्भ कैसे करें ? (भाग – २)


इस प्रक्रियाको करने हेतु प्रतिदिन अपनी चूकें (गलतियां) एक अभ्यासपुस्तिकामें लिखें, जो इस प्रक्रियाका प्रथम चरण है, तो आइए इससे क्या लाभ होता है ?, यह जान लेते हैं –
१. चूकें लिखनेसे अन्तर्मुखता बढती है, मैंने अनेक लोगोंको मात्र एक चूक प्रतिदिन लिखने हेतु प्रोत्साहित किया और वे स्वतः ही कुछ समय पश्चात् पांच-छ: चूकें लिखने लगे ।
२. चूकेंं लिखनेसे विवेक जागृत होता है, उचित क्या और अनुचित क्या है ?, यह थोडे समयमें समझमें आने लगता है ।
३. चूकेंं लिखनेसे अहम् न्यून होता है; क्योंकि इस प्रक्रियाको करनेवाले व्यक्तिको ज्ञात होता है कि उसमें अनेक दोष हैं, जिन्हें उसे दूर करना है और यह विचार उसके अहंको न्यून करनेमें सहायक होता है ।
४. सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि यदि हम चूकें स्वीकार कर, ईश्वरसे या जिस व्यक्तिको हमारी चूकोंके कारण कष्ट हुआ है, उससे क्षमा याचना करते हैं तो इससे उस चूकसे निर्माण हुए पापकर्मकी तीव्रता न्यून होने लगती है ।
५. क्षमा याचनासे मन सन्तुष्ट नहीं होता और हम स्वतः ही अगले चरणकी ओर बढते है और अपने पापके परिमार्जन हेतु प्रायश्चित लेते हैं ।
६. हमें चूकें लिखते देख हमारे परिजन या सहपाठी या सहसाधक भी प्रयास आरम्भ करते हैं ।
७. जब हम अपनी चूक सभीके समक्ष स्वीकार करते हैं तब उस चूकके कारण जिस व्यक्तिका मन व्यथित होता है, उसके मनसे हमारे प्रति आक्रोश, घृणा या प्रतिक्रिया न्यून हो जाती है ।
८. चूक नियमित लिखनेसे हमारे मनमें उचित और अनुचितका संस्कार क्या है ?, यह निर्माण होने लगता है और अपने मनके साथ निष्ठुरतासे वर्तन करनेपर मन नियन्त्रणमें आने लगता है ।
अतः जो भी साधक अपने व्यक्तित्वका विकास चाहते हैं या दोषोंका निर्मूलन चाहते हैं या अपने चित्तकी शुद्धि चाहते हैं, उन्होंने सर्वप्रथम अपनी चूकोंको नियमित लिखना चाहिए । – तनुजा ठाकुर (१२.१०.२१०७)


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