भिन्न स्वाभावदोषोंको दूर करने हेतु दृष्टिकोण (भाग – ८)


दोष : अनुशासनहीनता अन्तर्गत आलस्यके कारण कार्यपद्धतिका पालन न करना
यदि हम इस तथ्यका विवेचन करें कि किसी व्यक्तिसे कार्यपद्धतिका पालन क्यों नहीं होता है तो उसमें प्रथम दोष आलस्यका आता है ।  वैज्ञानिक सुख-सुविधाओंने आजके मानवको शारीरिक रूपसे आलसी बना दिया है और आज शारीरिक और मानसिक रोगोंमें वृद्धिका एक मुख्य कारण यह भी है ।
अब इस दोषको उदहारणसे समझ लेते हैं, जैसे यदि किसी कार्यालयमें यह पद्धति हो कि चाय पीकर प्याली एक नियोजित स्थानपर रखना है और यदि वह मिटटीका कुल्हड हो तो उसे किसी विशिष्ट स्थानपर फेंकना है तो कोई भृत(चपरासी या सेवक) चाय देकर चला जाता हो तो आलसी प्रवृत्तिके व्यक्ति उसे उठाकर यथास्थान नहीं रखते हैं ।  वैसे ही स्नानके पश्चात् स्नानगृह स्वच्छ न कर उसे अव्यवस्थित छोड देना, यह भी आलस्यके कारण होता है ।  संगणकीय सम्पत्रमें आये हुए पत्रको व्यवस्थित फोल्डरमें डालकर न रखना | यह तो मैंने कुछ प्रसंग मात्र बताए हैं, ऐसे अनेक प्रसंग सामान्य व्यक्तिके जीवनमें घटित होता है जब वह मात्र आलस्यके कारण कार्यपद्धतिका पालन नहीं करता या अपनी दिनचर्या अनुसार आचरण नहीं करता है ।  ध्यान रखें, आलस्य एक आसुरी लक्षण है; अतः इस दोषको तत्परता रुपी गुणसे परिवर्तित करें ।  जब-जब आलस्यके कारण आप कोई कृति करना आप टाल देते हैं तब-तब यह विचार मनको सूचित करें कि आलस्यसे तमोगुणमें वृद्धि होती है और स्वयंमें दैवीय गुणकी वृद्धि करनेवालेको साधक कहते हैं; अतः स्वयंमें साधकत्व निर्माण करने हेतु नित्य प्रयास करें ।  अपनी स्वाभावदोष अभ्यास पुस्तिकामें आलस्यसे सम्बन्धित सर्व व्याप्तिका चिंतन कर उसे लिखें, इसके कुछ उदहारण इसप्रकार हैं –
१. प्रातःकाल गजर(अलार्म) बजनेपर भी आलस्यवश तुरन्त न उठना
२. स्नानके पश्चात् तौलियाको वहीं अव्यवस्थित छोड देना
३. उठनेके पश्चात् अपने बिछावन व्यवस्थित न करना
४. आलस्यवश प्रतिदिन व्यायाम, सैर, योगासन आदि न करना
५. कार्यालय जानेसे पूर्व अपने वाहनको स्वच्छ न करना
६. कार्यालयमें जानेके पश्चात् अपने मेजपर वस्तुओंको अव्यवस्थित छोड देना
७. अपनी कपाटिकाको (अलमारीको) आलस्यवश अव्यवस्थित रखना
८. रात्रिमें आलस्यवश जूठे बर्तन धोकर न रखना
९. आलस्यके कारण प्रतिदिन स्नान न करना या अपने अंतरवस्त्र(अंडरगारमेंट्स) या अन्य वस्त्र परिवर्तित न करना या उसे न धोने और अस्वच्छ ही पहन लेना
१०. आलस्यवश जब चूक तभी उसे अपनी बहीमें न लिखना
अब ऐसे सभी प्रसंगोंमें तत्परतासे आदर्श वर्तन करना सीखें, यदि आवश्यकता हो तो आदर्श वर्तन हेतु स्वयंसूचनाएं दें ।  (इसके विषयमें आपको भविष्यमें इसी लेख श्रृंखलामें बताएंगे । )
मैंने ऐसा पाया कि आलसी लोगोंके शरीरसे विषाक्त तत्त्वका विसर्जन नहीं होता है और इसकारण भी उन्हें अनेक प्रकारके रोग होते हैं ।  आलसी लोगोंको अनिष्ट शक्तियोंका भी अत्यधिक कष्ट होता है एवं इस कारण कुछ लोग अनेक दिवस स्नान नहीं करते हैं, अपने घरकी स्वच्छता नहीं करते हैं या उन्हें सब कुछ काला रंगका अच्छा लगता है । अनेक बार वे अपने कक्षमें दिनमें अकेले अंधेरा कर निष्क्रिय पडे रहते हैं एवं अपने मनोराज्यमें रमे रहते हैं ।  ये लक्षण स्पष्ट रूपसे बताते हैं कि ऐसे लोगोंका देह भूतावेषित होता है ।  ऐसे लोगोंने प्रयास कर अपने आलस्य रुपी दोषको दूर करना चाहिए । (३१.१२.२०१७)



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