भिन्न स्वाभावदोषोंको दूर करने हेतु दृष्टिकोण (भाग – २)


अनुशासनहीनता
अपने अनुशासनहीनताकी सर्व व्याप्ति अपनी स्वाभावदोष पुस्तिकामें लिखें एवं उसमें जिससे समष्टिको सर्वाधिक कष्ट होता है उसे दूर करनेका प्रयास करें !
अनुशासनहीनताकी व्याप्ति ऐसे लिखें –
१. दोपहिए वाहनकी कुंजी(चाभी) यथास्थानपर नहीं रखी ।
२. स्नान करनेके पश्चात स्नानगृहकी बत्ती नहीं बुझाई और जालीके केश स्वच्छ नहीं किये ।
३. अपने बिछावन प्रातः उठनेके पश्चात् तुरंत नहीं समेटे जिससे सहसाधकको कक्ष स्वच्छ करनेमें अडचन आई ।
४. प्रातःकाल योगके वर्गमें दस मिनिट देरसे पहुंची ।
५. जिस समय नामजप करना था उस समय बैठकर समाचार पत्र पढ रहा था ।
इस प्रकार आप दिनचर्यामें कौन-कौन सी कृत्योंको करते समय आपसे अनुशासनहीन वर्तन होता है, यह लिखें ।
दूसरोंका विचार करना यह साधकका गुण है, इस दृष्टिकोणको ध्यानमें रखकर आपसे ऐसे कौनसे अनुशासनहीन कृत्य होते हैं जिससे दूसरोंको कष्ट होता है इसे प्राथमिकतासे दूर करें।  उसीप्रकार आप किसी संस्था या प्रतिष्ठानसे यदि जुडे हैं तो आप वहांके किन-किन कार्यपद्धतियोंका पालन नहीं करते है जिससे संस्था या प्रतिष्ठानको हानि पहुंचती है, यह भी लिखें ! हिन्दू राष्ट्रमें सभी अनुशासनप्रिय होंगे; अतः उस सुराज्यमें अपना स्थान सुनिश्चित करने हेतु अनुशासनबद्ध रहना सीखें ! – तनुजा ठाकुर (२५.१२.२०१७)



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