१. आश्रममें मेरे छोटे पुत्रेके पैरमें एक फुंसी हो गई । उसमें उसे अत्यधिक पीडा होने लगी तो मैंने एक सहसाधकके कहे अनुसार उसपर विभूति लगा दी । और आश्चर्य अगले दिवस सवेरेतक वह व्रण (घाव) पूर्णतः ठीक हो गया ।
२. आश्रममें आकर मेरा आलस्य पूर्णतः समाप्त हो गया ।मुझे आश्रममें एक दिन भी दोपहरमें सोनेका मन नहीं होता था । (यह आश्रममें विद्यमान चैतन्यके कारण हो रहा था ।) – सीमा गुप्त, दुबई
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