१. साधको, आप जब कुछ दिवसके लिए आश्रममें आते हैं या आश्रमसे जानेका नियोजन करते हैं और आपके पास पर्याय हो तो मध्य रात्रि या प्रातः तीन या चार बजेके वायुयान, रेलयान या बसयानसे यात्रा करना टालें ! यह इसलिए कहा जा रहा है; क्योंकि मैंने देखा है कि आज अधिकांश लोगोंमें दूसरोंका विचार करना, यह गुण नहीं होता है और वे यह नहीं सोचते हैं कि आश्रममें साधक सवेरेके छह बजेसे रात्रिके दस बजेतक सेवामें व्यस्त रहते हैं, ऐसेमें कोई मध्य रात्रि या तडके जानेका नियोजन करे तो जो भी साधक उन्हें लेने या छोडने जाते हैं, उनकी निद्रामें भी विघ्न पडता है और पुनः सम्पूर्ण दिवस उन्हें अनेक बार विश्रान्ति भी नहीं मिलती है । आश्रममें प्रतिदिन कोई आता है और कोई जाता है, अतः दूसरोंका विचारकर अपनी यात्राका नियोजन किया करें ! आश्रमवासी बडे प्रेमसे आपका आतिथ्य करने हेतु तत्पर रहते हैं; किन्तु आपका भी आश्रमके प्रति एवं उसमें रहनेवाले साधकोंके प्रति कुछ धर्म होता है, उसका पालन किया करें ! साथ ही, आश्रम आने और जानेकी पूर्व सूचना व्यवस्थित रूपसे दिया करें, यह आपकी साधनाका ही भाग है ।
२. आश्रममें अनेक बार कुछ साधकोंको या निवासियोंको बाहरसे आए आगंतुकों या साधकोंके साथ कक्ष साझा करना पडता है । अनेक बार ऐसा देखा जाता है कि जो बाहरसे आते हैं वे रात्रिमें अपने सहसाधकके साथ अर्ध रात्रि या सम्पूर्ण रात्रि बातें करते हैं, जिससे उस कक्षमें सोनेवाले अन्य निवासियों या साधकोंकी निद्रा पूरी नहीं होती है; किन्तु वे संकोचवश कुछ बोल नहीं पाते हैं । इसमें जो कार्यकर्ता अतिथियोंके साथ सोनेके समय अन्य लोगोंका विचार नहींकर बातें करते रहते हैं, वे तो दोषी हैं ही साथ ही अतिथियोंको भी इस तथ्यका ध्यान रखना चाहिए कि यदि आश्रममें आकर आश्रमके नियमका पालन वे नहीं कर पाते हैं या दूसरोंका विचार नहीं कर पाते हैं और उनके कारण अन्य साधकों या निवासियोंको कष्ट होता है तो उनका आश्रममें आनेका जो मुख्य उद्देश्य है, अर्थात ईश्वरीय कृपाका संचार, वह नहीं हो पाता है । ध्यान रखें ! जो भी संस्थान या प्रतिष्ठानमें आप जाते हैं, उनके नियमका पालन करना आपका धर्म है और दूसरोंका विचार करना, साधना है ।
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