यूरोपके देवालयोंमें आरतीके मध्य होनेवाले अधर्म


यूरोपमें हिन्दुओंके अनेक देवालयोंमें (मन्दिरोंमें) मैंने आरतीके समय अनेक अधर्म होते हुए देखा है । वहां आरतीके समय एक-एक कर जितने भी भक्त देवालयमें उपस्थित रहते हैं, सभी एक या दो मिनिट आरतीकी थालको देवताके समक्ष घूमाते हैं । इस क्रममें जो भी आरतीके लिए उपस्थित रहते हैं, किसीका भी मन आरतीके मध्य एकाग्रचित्त नहीं रहता, सब मात्र अपनी बारीके आनेकी प्रतीक्षा करते रहते हैं, कुछ तो थाली लेनेकी होडमें भी लगे रहते हैं । आरती उतारनेवाले भक्तोंमें अनेक तो मद्य विक्रय केन्द्रसे (शराबकी की दूकानसे) चाकरी कर आए हुए होते हैं तो कुछ ऐसे भोजनालयमें कार्य कर आए होते हैं, जहां गोमांस बनाने या परोसनेका अथवा झूठन स्वच्छ करनेका कार्य करते हैं । वे सभी बिना नहाये आरतीकी थाल घूमाने हेतु आगे आ जाते हैं । यूरोपमें अधिकांशत: हिन्दू शौचके पश्चात् कागदका (कागजका) उपयोग करते हैं एवं वे उसी स्थितिमें यदि अपने कार्यालयसे देवालय आए हों, तो बिना नहाये आरती उतारते हैं । वहांके अधिकांश देवालयोंके शौचालयोंमें भी पानीके स्थानपर कागदका ही उपयोग किया जाता है । जब मैंने इस अधर्मके विषयमें बताया तो अधिकांश हिन्दुओंको यह स्वीकार्य नहीं हुआ । उनका कहना था जो हो रहा है वह सही है, इसीलिए उसे चलने दिया जाए । तो हिन्दुओं ! कर्मकाण्डमें शरीरकी शुचिताका (पवित्रताका) अत्यधिक महत्त्व होता है, यह ध्यान रख देवालयके पूजन आदि विधिमें सहभागी हों !

दूसरी बात यह है कि सामूहिक आरती किसी एक व्यक्तिद्वारा ही करनी चाहिए, शेष अपने स्थानपर खडे होकर, एकाग्रचित्त होकर मनसे आरती करें तो ही आरतीका हमें लाभ मिलता है । देवालयोंमें देवताकी मूर्तिकी प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी होती है; अतः उससे अत्यधिक शक्ति निकलती है इसीलिए जहांतक सम्भव हो स्त्रियोंने ऐसे स्थानपर सामूहिक आरतीके समय आरतीकी थाल नहीं लेनी चाहिए; क्योंकि आरतीके समय देवतासे प्रक्षेपित होनेवाली शक्ति यदि आरती करनेवाली स्त्री सहन न कर सके तो उसे, उससे कष्ट हो सकता है । इसी शास्त्रके कारण हिन्दू धर्ममें देवालयोंमें स्त्री पुरोहितका प्रचलन नहीं है । यह सब अधर्म विशेषकर पंजाबके हिन्दुओंद्वारा संचालित देवालयोंमें अधिक देखनेको मिला है एवं अहंकारका प्रमाण अधिक होनेके कारण यदि उन्हें यह तथ्य बताया जाए तो सभी एक साथ विरोध करने लगते हैं अर्थात् उन्हें धर्म और शास्त्रोंकी बातें स्वीकार्य नहीं होती हैं; इसीलिए यूरोपके ९८% मन्दिरोंमें चैतन्यका प्रमाण नगण्य हैं एवं देवालयोंके पदाधिकारोंके मध्य भारी मतभेद देखा गया है तथा देवालयोंमें भिन्नप्रकारकी समस्याएं लगी रहती हैं, जिस कारण उन देवालयोंमें धर्म और अध्यात्म सिखाना अत्यधिक कठिन जान पडा ! हिन्दुओ ! अपने देवालयके चैतन्यको बढाने हेतु शास्त्रसम्मत कर्म करें अन्यथा आनेवाले विनाशकारी कालमें वह चैतान्यहीन ढांचा उद्ध्वस्त हो सकता है ! – तनुजा ठाकुर



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