पूर्व कर्मचारीने फेसबुककी राजनीतिक निष्पक्षतापर पोल खोली, हिन्दुवादी विचारधारा दबानेका आरोप !!


मार्च १२, २०१९


लोकसभा चुनावोंके साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है, जिसके अन्तर्गत मीडिया भी किन समाचारोंको प्रदर्शित कर सकता है और किनको नहीं ?, क्या छाप सकता है और क्या नहीं ?, (जैसे एक्जिट पोल्स, चुनावी प्रचार सामग्री आदि) आदि भी तार्किक नियमोंकी सीमामें है, जिसका उल्लंघन करनेपर इनको गम्भीर परिणाम भुगतने पड सकते हैं; परन्तु राजनीतिकमें प्रभाव डाल सकनेके हिसाबसे सबसे बडा और शक्तिशाली माध्यम ‘फेसबुक’ चुनाव आयोग, और यहातक कि भारत शासनकी पहुंचके न केवल बाहर है, बल्कि राजनीतिमें सक्रिय हस्तक्षेपके (फेसबुक अधिकारियोंद्वारा अपने फेसबुक पदका प्रयोग राजनीतिको प्रभावित करनेके लिए करना) लिए कमर कसकर तैयार भी है ।   

गैर लाभकारी प्रसार जालस्थल परियोजना ‘वेरिटास’ने गत २७ फरवरीको फेसबुककी आन्तरिक गतिविधियोंको लेकर अत्यधिक चिंताजनक कुछ लिखितपत्र जारी किए हैं । इनके अनुसार हिंसक, भडकाऊ, और फर्जी समाचार फैलानेवाली सामग्री रोकनेके नामपर फेसबुक प्रबन्धन दक्षिणपंथी सामग्री और व्यक्तियोंको लक्ष्य बनाकर प्रसारित होनेसे रोक रहा है । (इन्टरनेटकी भाषामें इसे टार्गेटेड डीबूस्टिंग कहते हैं)


जिन साक्ष्योंके आधारपर वेरिटासने यह दावा किया है, वह लिखितपत्र उसे फेसबुककी ही पूर्व कर्मचारीने उपलब्ध कराए हैं । उसकी सुरक्षा और उसे ऑनलाइन प्रताडनासे बचानेके कारण ‘वेरिटास’ने उसका अभिज्ञान गुप्त रखते हुए केवल इतना बताया है कि वह कर्मचारी अब ‘वेरिटास’के साथ ही काम कर रही है ।

‘ActionDeboostLiveDistribution’के इस तकनीकी निर्देशको, ‘इनसाइडर’ कहकर विवरणमें वर्णित कर्मचारीके अनुसार, उसने जब माइक सर्नोविच (अमेरिकी लेखक व राजनीतिक टिप्पणीकार), स्टीवेन क्राउडर (अमेरिकी दक्षिणपंथी हास्य-कलाकार और अभिनेता), डेली कॉलर (वॉशिंगटन डीसीसे चलनेवाली दक्षिणपंथी समाचार व ओपिनियन जालस्थल, जिसे डिजिटल मार्केटिंग विशेषज्ञ नील पटेल और दक्षिणपंथी राजनीतिक टिप्पणीकार टकर कार्लसनने स्थापित किया है) आदि दक्षिणपंथी हैंडल्सपर नोटिस किया तो उसे शंका हुई ।

यहां यह जानना आवश्यक है कि क्राउडरके विरुद्घ पहले भी इसीप्रकारके गुप्त प्रतिबन्धको लेकर फेसबुक विवादोंमें घिर चुका है । ख्रिस्राब्द २०१६ में डिजाइन, तकनीक, विज्ञानसे जुडे विषयोंकी विशेषज्ञ जालस्थल गिज्मोडोने अपने एक समाचारमें यह दावा किया था कि स्टीवेन क्राउडर, जोकि फॉक्स न्यूजके साथ भी जुडे रह चुके हैं, क्रिस काइल (भूतपूर्व सील सैनिक, २०१३ में जिनकी हत्या हुई), दक्षिणपंथी न्यूज एग्रीगेटर द ड्रेज रिपोर्ट इत्यादि छः विषयोंको फेसबुक योजनाबद्ध ढंगसे ट्रेंड करनेसे, लोगोंकी ‘न्यूज फीड’में आने आदिसे रोक रहा है ! उल्लेखनीय है कि सभी छः विषय दक्षिणपंथियोंके लिए ही भावनात्मक थे ।

इस समाचारके सामने आनेके पश्चात क्राउडरने फेसबुकपर अभियोग किया था, जिसका निपटारा फेसबुकको ‘आउट-ऑफ-कोर्ट सेटेलमेंट’में करना पडा था । इनसाइडरने जब अश्वेत अमेरिकी खिलाडी कॉलिन केपर्निक, यंग टर्क्स आदि वामकी ओर झुकाव रखनेवाले फेसबुक पृष्ठपर ‘ActionDeboostLiveDistribution’को ढूंढनेका प्रयास किया तो उन्हें यह किसी भी वामपंथी व्यक्ति या संस्थाके फेसबुक पृष्ठपर नहीं मिला ।

वेरिटासने जब अभी भी फेसबुकमें कार्यरत अपने एक गुप्त सूत्रसे समाचार और दावोंकी पुष्टि करनी चाही तो उस सूत्रने अनाधिकारिक रूपसे इस समाचारकी पुष्टि करते हुए साथमें यह भी जोडा कि यह टैग पूर्ण रूपसे गुप्त होकर अपना कार्य करता है । इसका अर्थ यह हुआ कि जिस उपभोक्ताके फेसबुक पेजपर यह टैग लगाया जाता है, उसे ज्ञात भी नहीं होता कि उसके पेजपर यह प्रतिबन्ध लगाया गया है और उसकी लाइवस्ट्रीम उसके मित्रोंकी ‘न्यूजफीड’में दिखनी बंद हो चुकी है, उन्हें उसके लाइव जानेकी सूचना नहीं आती और उसके लाइव वीडियो साझा भी नहीं हो पाते !

वेरिटासके पास लिखितपत्रमें यह ‘ActionDeboostLiveDistribution’ फेसबुकका एक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम’ है, जिसे फेसबुकने आत्महत्या जैसी किसी भी नागरिकको विचलित कर सकनेवाली सामग्रीसे दुर्बल हृदयवालोंकी रक्षा करनेके लिए विकसित किया था; परन्तु इन लिखितपत्रोंसे यह स्पष्ट है कि फेसबुक इसका दुरुपयोग राजनीतिक हित साधनेके लिए कर रहा है ।

वेरिटासने यह भी बताया कि ‘डेटा साइंस मेनेजर’ सेजी यामामोटो और फेसबुकके मुख्य डेटा वैज्ञानिक एडूआर्डो एरिनो डे ला रुबियाने एक चिंताजनक विवरण फेसबुकके आतंरिक चैनलमें प्रस्तुत किया है । वे फेसबुककी सीक्रेट सेंसरशिपको नस्लवादी और होमोफोबिक गालियोंसे आगे ले जाकर ‘पोटेंशियली हेट्फुल’ (संभावित रूपसे घृणा प्रसारित करनेवाली) वर्ग बनाकर उसपर भी “प्रतिबन्ध लगाने”को कहते हैं । जिन ‘कीवर्ड्स’में वह ‘सम्भावित घृणा’की सम्भावना देखते हैं, उनमें लगभग सभी शब्द दक्षिणपंथी सर्कल्समें साधारण हंसी-मजाक या मुख्यधाराके ‘पॉप-कल्चर और मीम-कल्चर’का अंग हैं ।

यही नहीं, महत्वपूर्ण चुनावोंके पहले चिह्नित दक्षिणपन्थी उपभोक्ताओंको तकनीकी खराबियां देने, जैसे कि बार-बार ‘ऑटो-लॉगआउट’, उनके कमेन्ट करनेमें बाधा उत्पन्श करना, आदि सम्मिलित हैं । इसके अतिरिक्त किसी भी उपभोक्ताको प्रतिबन्ध करनेके समय उसकी मित्र-सूचीको इसकी सूचना देकर उसकी सोशल शेमिंग और दूसरे “ट्रोल्स” (जिसमें फेसबुककी दुराग्रही परिभाषाके चलते कोई भी दक्षिणपंथी उपभोक्ताको सम्मिलित हो सकता है) आतंकित करनेको भी कहा गया है ।

सबसे अधिक फेसबुक उपभोक्ताका देश होनेसे निश्चित रूपसे भारतके लिए यह महत्वपूर्ण है । ५ साल पूर्व, जब फेसबुकका राजनीतिक प्रभाव इसप्रकार नहीं था, तब ही नरेन्द्र मोदीने सम्भवतः आधा चुनाव फेसबुकपर ही विजय कर लिया था । तबसे फेसबुकका राजनीतिक महत्त्व बढता जा रहा है ।

ऐसेमें फेसबुकका एक राजनीतिक विचारधारा और पक्षकी आवाजपर प्रतिबन्ध लगाना निष्पक्ष चुनाव करानेकी हमारी व्यव्स्थामें बाधा डालना ही है ।

दक्षिणपंथी आवाजोंको दबानेके लिए जिन ढंगके प्रयोग करनेको इन लिखितपत्रोंमें कहा गया है, वह समस्याएं, जैसे बार-बार ऑटो-लॉगआउट, कमेन्ट करनेमें बाधा इत्यादि एक बडी संख्यामें भारतीय उपभोक्ता काफी समयसे झेल रहे हैं । अभी तक तो इन्हें नेटवर्क समस्या, डिवाइस समस्या आदि मानकर हम अनदेखा करते आए हैं; परन्तु अब यह प्रश्न मनमें उठेगा कि क्या फेसबुक अपने स्वयंके देश अमेरिकामें जिसप्रकारका राजनीतिक हस्तक्षेप करनेके बारेमें सोच भर रहा है, भारतमें क्या उसने गुप्त रूपसे उसे लागू भी कर दिया ? या फिर भारतीय उपभोक्ता उसके ‘गिनीपिग्स’ हैं, जिनपर वह यह सब परीक्षण कर रहा था ?

लोकसभा चुनावोंकी घोषणा होते ही यह समाचार आया कि फेसबुक चुनावोंमें अपने दुरुपयोगको रोकनेके लिए अमेरिका जैसा ‘वॉर रूम’ बना रहा है और राजनीतिक विज्ञापनोंसे जुडे सारे ब्यौरे साप्ताहिक रूपसे सार्वजनिक करेगा ।

क्या फेसबुक यह लिखितपत्र देगा कि वह किसी भी भारतीय उपभोक्ताके राजनीतिक झुकावके कारण उसके लेखोंको ‘बूस्ट या डीबूस्ट’ नहीं कर रहा है ?

चुनाव आयोग भी फेसबुकके साथ सहयोग करके चुनाव प्रक्रियामें उसकी भूमिकाको मान्यता और स्वीकार्यता पानेमें सहयोग कर रहा है । क्या चुनाव आयोगको फेसबुकका यह सत्य ज्ञात है ?

यदि फेसबुक भारतमें अपनी निष्पक्षता उपरोक्त लिखितपत्र या किसी अन्य प्रकारसे सिद्ध नहीं करता है तो यह माननेके पूरे-पूरे कारण होने चाहिए कि फेसबुक यह ‘इलेक्शन वॉर रूम’ निष्पक्षताके लिए नहीं वरन अपने वामपंथी मित्रोंको और सहयोग करनेके लिए कर रहा है ।

 

स्रोत : ऑप इण्डिया



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