जल भी नहीं पिएंगे गंगाके लिए अनशन कर रहे आत्मबोधानंद, प्रधानमन्त्रीको लिखी पत्र !!


अप्रैल २१, २०१९

 

गंगाकी स्वच्छता और अबाध प्रवाहके लिए गत वर्ष अक्टूबरसे ही अनशनपर बैठे २६ वर्षीय स्वामी आत्मबोधानंदने अब जल ग्रहण त्यागनेका भी निर्णय कर लिया है । केरलके रहनेवाले आत्मबोधानंदने बताया कि गंगाकी स्वच्छताकी लिए उनकी सारी आशाए़ अब समाप्त हो चुकी हैं । उन्होंने यह भी कहा कि पवित्र नदीके लिए वह अपने प्राणतक देनेसे नहीं डरते है । संतने इसपर देशके प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और संयुक्त राष्ट्र महासचिवको पत्र भी लिखा है ।

अपने पत्रमें स्वामीने लिखा है कि गंगाकी स्वच्छताके लिए अनेक संत प्रदर्शन कर रहे हैं; परन्तु न तो राज्य शासन और न ही केन्द्र उनकी मांगोंकी ओर ध्यान दे रही है । सन्तने आगामी २७ अप्रैलसे जल ग्रहण भी न करने का निर्णय किया है । इस बारेमें अपने ११ सूत्रीय पत्रमें आत्मबोधानंदने केन्द्र शासनको लिखा है कि आपकी गंगा-विरोधी मानसिकताने मेरे पास कोई और विकल्प नहीं छोडा है । स्वामीने अपने पत्रमें मांग की है कि गंगा तथा इसकी सहायक नदियोंके सभी वर्तमान और प्रस्तावित बांध निरस्त कर दिए जाएं ।

इसके अतिरिक्त उन्होंने गंगा बाढके मैदानोंमें खनन और वनोंकी कटाईपर रोक लगाने, नदीके हितमें निर्णय लेनेके लिए एक स्वायत्त गंगा भक्त परिषदके गठन और नदीके संरक्षणके लिए ‘गंगा अधिनियम’को पारित करनेकी भी मांग की है । आत्मबोधानंदने केंद्र शासनपर आरोप लगाया कि उसने दिवंगत संत जीडी अग्रवालसे किए गए वचनको भी पूरा नहीं किया । बता दें कि केंद्र शासनने ‘हाइड्रो पॉवर परियोजना’ नहीं बनाने और खनन रोकनेका वचन अग्रवालसे किया था; परन्तु केंद्रीय प्रदूषण नियन्त्रण समिति और ‘नमामि गंगे’के दिशा-निर्देशोंके विरुद्ध गंगाके बाढ मैदानोंमें खनन जारी है ।


आत्मबोधानंदने अपने पत्रमें लिखा है कि पानी पीना छोड देना उनके विरोधका सबसे सशक्त निर्णय है । उन्होंने कहा है कि गंगाके किनारे निर्माण कार्य वैज्ञानिक अध्ययनोंके अनुसार नहीं किया जा रहा है । गंगाका पानी निरन्तर अपना औषधीय गुण खोता जा रहा है और इसका पानी अब पीने योग्य नहीं बचा है ।

 

“तथाकथित विकासवाद, पर्यावरणविरोधी शासकगणोंने अपनी स्वार्थपूर्तिको लेकर नदियोंको बांधकर अनेकानेक परियोजनाएं चला दी, जंगलोंको कटवा दिया और इनके निरीक्षणमें मिट्टीका अवैध खनन हो रहा है, इन सबके चलते गंगा अपनी प्राण ऊर्जाको खोती जा रही है । हम विकासके विरुद्ध नहीं; परन्तु विकास जब प्रकृतिके विरुद्ध जाता है तो विनाश बन जाता है । आजके शासकगणोंका ध्यान जाता है कि कैसे घाट चमके, गंगामेन मोटर जहाज चलें, जो कि बुरा नहीं है; परन्तु घाटको चमकानेसे खाली वोट मिलेंगें, गंगाकी मूल समस्या समाप्त नहीं होगी ! गंगाको शासकगण अपनी ईच्छानुसार स्वच्छ करना चाहते हैं, इसमें यदि किसी तटस्थ पर्यावरणविदसे परामर्श लिया जाएगा तो वह भी यही परामर्श देगा और गंगापर अनशन करते-२ अनेक साधु-सन्त अपने प्राण खो चुके हैं; अतः अब स्पष्ट है कि गंगाकी यह विडम्बना रोकना किसी दलके वशकी बात नहीं, यह तो अब अएवल धर्मराज्यकी स्थापनाके पश्चात ही सम्भव है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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