गौ संरक्षण एवं संवर्धन क्यों है आवश्यक ?


देशी गायकी प्रजातियोंको तीन वर्गोंमें विभाजित किया जा सकता है –
१. दुग्धप्रधान एकांगी प्रजाति – अच्छा दूध देनेवाली; किन्तु उसकी सन्तान खेतीके कार्योंमें अनुपयोगी
२. वत्सप्रधान एकांगी प्रजाति – दूध अल्प मात्रामें देती है; किन्तु उसकी सन्तान कृषि कार्योंके लिए उपयोगी
३. सर्वांगी प्रजाति – अच्छा दूध देनेवाली और सन्तान खेतीके कार्योंमें उपयोगी
उपर्युक्त श्रेणियोंमें सन्तानकी खेतीमें उपयोगितासे आशय, उनके बछडेके बैल बननेके पश्चात गाडी खींचना, जुताई, हल चलाना आदिसे है ।
भारतीय गायोंकी कुछ प्रजातियां
१. साहिवाल (सायवाल) : यह प्रजाति भारतमें कहीं भी रह सकती है । ये दुग्ध उत्पादनमें अच्छी होती हैं । इस जातिकी गायें लाल रंगकी होती हैं । शरीर लम्बा और टांगे छोटी होती हैं । चौडा माथा, छोटे सींग और गर्दनके नीचे त्वचा लोर होता है । इनके थन झूलते हुए ढीले रहते हैं । सामान्यतः इनका भार चार सौ किलोग्रामतक रहता है । ये प्रसवके पश्चात दस माहतक दूध देती हैं । दूधका मध्यमान प्रतिदिन दससे सोलह लीटर होता है । ये पंजाबमें मांटगुमरी, रावी नदीके आसपास और लोधरान, गंजिवार, लायलपुर आदि स्थानोंपर पाई जाती हैं ।
२. लाल सिन्धी : इनका मुख्य स्थान पाकिस्तानका सिन्ध प्रान्त माना जाता है । इनका रंग लाल बादामी होता है । ये आकारमें साहिवालसे मिलती जुलती होती हैं । इनके सींग जडोंके पाससे अधिक मोटे होते हैं, पहले बाहरकी ओर निकले हुए, अन्तमें ऊपरकी ओर उठे हुए होते हैं । शरीरकी तुलनामें इनके कूबड बडे आकारके होते हैं । ये दूसरे जलवायुमें भी रह सकती हैं और इनमें रोगोंसे लडनेकी अद्भुत क्षमता होती है । सामान्यतः इनका भार ३५० किलोग्रामतक होता है । ब्यानेके ३०० दिनोंके भीतर ये २००० लीटर दूध देती हैं ।
३. गीर : इनका मूल स्थान गुजरातके काठियावाडका गीर क्षेत्र है । इनके शरीरका रंग पूरा लाल या श्वेत या लाल-श्वेत मिश्रित या काला-श्वेत मिश्रित हो सकता है । इनके कान चौडे और सींग पीछेकी ओर मुडे हुए होते हैं । सामान्यतः इनका भार चार सौ किलोग्रामतक होता है । ये प्रतिदिन ३०-५० लीटरतक दूध देती हैं ।
४. थारपारकर : इनकी उत्पत्ति पाकिस्तानके सिन्धके दक्षिण पश्चिमका अर्ध मरुस्थल थारमें माना जाता है । इनका रंग धूसर (भूरा) या श्वेत होता है । इनका मुख लम्बा और सींगोंके मध्यमें चौडा होता है । सामान्यतः इनका भार चार सौ किलोग्रामका होता है । इनकी आहार-मात्रा (खुराक) अल्प होती है एवं सामान्यतः ये प्रतिदिन १० से १५ लीटरतक दूध देती हैं ।
५. मालवी : ये गाएं दुधारू नहीं होती हैं, इनका रंग धूसर (खाकी) श्वेत और गर्दनपर हल्का श्याम (काला) रंग होता है । ये ग्वालियरके आसपास पाई जाती हैं ।
६. नागौरी : राजस्थानके जोधपुरके आसपास इनका प्राप्ति स्थान है । ये अधिक दुधारू नहीं होती हैं; किन्तु ब्यानेके पश्चात कुछ दिन दूध देती हैं ।
७. पवार : इस प्रजातिकी गायको क्रोध शीघ्र आ जाता है । इनका पीलीभीत, पूरनपुर, खीरी मूल स्थान है । इसके सींग सीधे और लम्बे होते हैं और पूंछ भी लम्बी होती है, इसका दुग्ध उत्पादन न्यून (कम) होता है ।
८. हरियाना : इसका मूल स्थान हरियाणाका करनाल, गुडगांव और देहली है । ये ऊंची कद और गठीले शरीरकी होती हैं । इनका रंग श्वेत, मोतिया, हल्का भूरा होता है । इनसे जो बैल बनते हैं, वे खेतीके कार्य और बोज ढोनेके लिए उपयुक्त होते हैं । इसका दुग्ध उत्पादन सामान्यतः प्रतिदिन ८ से १२ लीटरतक होता है ।
९. भगनाडी : ये नाडी नदीके आसपास पाई जाती हैं । इनका मुख्य भोजन ज्वार है । इनको नाडी घास और उसकी रोटी बनाकर खिलाई जाती है । ये दूध अच्छा देती हैं ।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution