गर्भपात क्यों न करें ? (भाग-४) 


वर्तमान शिक्षा नीतिमें हिन्दुओंको उनके धर्मशास्त्रोंके ज्ञानसे जानबूझकर सोची समझी रणनीतिके अन्तर्गत अनभिज्ञ रखा गया, जिससे वह नाम मात्र हिन्दू रह जाए और वह हुआ भी है; इसलिए आजका हिन्दू शिक्षित तो हो जाता है किन्तु धर्मनिष्ठ नहीं होनेके कारण उसका विवेक जाग्रत नहीं होता है और उससे अनेक बडे अपराध होते हैं, इसी श्रेणीमें आता है गर्भपात करवाना ।

शास्त्र कहता है –
यत्पापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं गर्भपातने ।
प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते ॥- पाराशरस्मृतिः 4.20
अर्थात ब्रह्महत्यासे जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात करनेसे लगता है। इस गर्भपातरूपी महापापका कोई प्रायश्चित नहीं है । इसमें तो उस स्त्रीका त्याग कर देनेका ही विधान है ।
एक कहावत है कि स्वयंद्वारा लगाया हुआ विषवृक्ष भी काटा नहीं जाता । विषवृक्षोઽपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम् । जिस गर्भका स्त्री-पुरुष मिलकर सृजन करते हैं, स्वयं ही उसकी हत्या कर देना कितना महान पाप होगा ?, स्वयं सोचें !
सत्य तो यह है कि गर्भस्थ शिशुको अनेक जन्मोंका ज्ञान होता है । इसलिए श्रीमद्भागवतमें उसे ऋषि कहा गया है, ऐसे जीवकी हत्या करना अक्षम्य अपराध है ।



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