गीताकी सीखको आत्मसात करें


वर्तमान कालमें हिन्दू समाजको गीताके खरे ज्ञानकी सीख देनेवाले धर्मगुरुओंकी है, अत्यधिक आवश्यकता
भगवद्गव्यका ज्ञान भगवान श्रीकृष्णने अर्जुनको उसे अपने क्षत्रिय धर्ममें पुनः प्रवृत्त करने हेतु दिया था । अर्थात गीता हमें अन्याय एवं अधर्मके विरुद्ध धर्मपालन करनेकी सीख देती है । यदि सम्पूर्ण गीता कण्ठस्थ हो और समाजमें व्यभिचार, अराजकता, अनाचार, भ्रष्टाचार इत्यादि व्याप्त होनेपर भी हम उसे तटस्थ होकर देखते हैं तो समझ लें कि हमने गीताकी सीखको आत्मसात नहीं किया है । गीता कहती है कि अन्याय या अधर्म करनेवाला व्यक्ति यदि स्वजन हो तो भी हमने उनका विरोध करना चाहिए । अधर्मी दुर्जन कितना भी शक्तिशाली हो, उसे दण्डित करने हेतु हमने अवश्य ही प्रयास करने चाहिए; क्योंकि धर्मके रक्षक साक्षात परमेश्वर होते हैं, वे हमारी निश्चित ही सहायता करते हैं और जब वे हमारे साथ हों तो विजय भी हमारे पक्षमें होना निश्चित है ! आज गीताकी इस सीखको समाजको सिखानेवाले धर्मगुरुओंकी अत्यधिक आवश्यकता है । – तनुजा ठाकुर



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