जर्मनीके प्रकाश चाननाकी अनुभूतियां


१. चिकित्सालयमें शस्त्रोपचारको रोककर मांद्वारा जीवनदान मिलना :

जून २०१६के ग्रीष्मकालमें (गर्मीके दिनोंमें) कुछ अतिथियों सहित हम सभी किसी पर्वतीय क्षेत्रमें घूमनेके लिए गए हुए थे ।ऊपर पहुंचनेसे कुछ समय पूर्व मेरी धर्मपत्नी “जया”को अचानक कष्ट अनुभव हुआ । हम सभीने कहा कि पर्वतपर चढनेसे सांस तो सबकी फूलती ही है, किसी विशेष बातपर ध्यान नहीं गया ।कुछ समय वहींपर रुककर आगे निकले । घर पहुंचनेपर कुछअधिक कष्ट अनुभव होनेपर अगले दिवस चिकित्सकके पास गए तो उसने किसी विशेष जांच करवानेके लिए बडे चिकित्सालयमें भेजा । जांचके पश्चात चिकित्सकोंका निर्णय था कि हृदयघात अथवा’ब्लॉकेज’ है, ‘बाईपास सर्जरी’ करवानी होगी । सभी घबरा गए । कुछ अन्य चिकित्सकोंसे सुझाव लेनेपर, उन्होंने भी शल्यक्रिया (ऑपरेशन) ही बताया । एक और चिकित्सकने भी यही बताया तो हमने चिकित्सालयमें कक्ष आरक्षित करवा लिया और अगले दिवस शल्यक्रियाकी तिथि निश्चित की गई । यह शल्यक्रिया कितनी गम्भीर है ?, यह पूछनेपर चिकित्सकोंने बताया कि सफलता अथवा असफलता भगवानके हाथमें है, हमारी ओरसे कोई’गारंटी’ आश्वासन नहीं है । इससे पहले भी कई ऐसे शल्यक्रियाके विषयमें सुन चुके थे कि वे २०% सफल होते हैं ।शेष अधिकतर असफल रहे । कुछ लोग’कोमा’ (लम्बे समयतक अचेतन अवस्थामें) चले गए, चार-छह माहके पश्चात चल बसे । सभीको बहुत घबराहट हुई, कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे । मेरे पास एक ही मार्ग था, नामजप और मैं वही आर्ततासे कर रहा था ।
अगले दिवस सवेरे बडे चिकित्सालयमें दस बजे पहुंचना निश्चित था । अकस्मात सायं मांका दूरभाष आता है कि भाभीसे बात करनी है । मैं आश्चर्यचकित हो गया कि आजतक कभी मांसे दूरभाषपर बात ही नहीं हुई थी । यह कैसा अचम्भा है कि मांको आज हमारा स्मरण हो आया । मेरी पत्नीसे बात करनेपर, मांने उसे कहा कि कोई शल्यक्रिया (ऑपरेशन) नहीं करवाना है, सब ठीक हो जाएगा । मांने एक विशेष नामजप मेरी धर्मपत्नीको बताया और चिकित्सालयसे नाम कटवानेके लिए बताया ।
अगले दिवस चलभाषपर नाम कटवा दिया तो चिकित्सक क्रोधित हो गया, किसी दूसरे चिकित्सकसे बात की तो उसने कुछ औषधियां लिख दीं और कुछ बातोंका ध्यान रखने हेतु कहा ।आज दो वर्ष हो गए हैं, सब ठीक चल रहा है । हृदयमें थोडी-थोडी पीडा होती रहती है, औषधि लेते रहनेसे ठीक हो जाती है(यह भी इसलिए होता है; क्योंकि वे जपको नियमित नहीं करती हैं, वस्तुतः इस प्रकरणमें इनकी पत्नीके अनाहत चक्रके आस-पास अनिष्ट शक्तियोंने आवरण डालकर उसे अवरुद्ध किया था, जपसे वह अवरोध न्यून हो गया और शल्यक्रियाकी आवश्यकता नहीं पडी ।प्रकाश भैया, उपासनाके कार्य हेतु, नियमित अर्पण भेजते हैं, इस बार जब वे उपासनाके आश्रममें आए थे तो उन्होंने बात ही बात सरल भावसे बताया कि उपासनाके कार्यमें आर्थिक रूपसे थोडा आर्थिक योगदान देने हेतु वे अपने कार्यके समयसे अधिक ‘ओवरटाइम’ करते हैं ।भक्तवत्सल ईश्वर अपने भक्तद्वारा किए गए त्यागको कभी नहीं भूलते हैं इस अनुभूतिसे मुझे भी यह सीखने हेतु मिला ।मैं सामान्यतः लेखन एवं अन्य सेवाओंमें व्यस्त रहती हूं; इसलिए साधकोंसे बात नहीं कर पाती हूं; किन्तु साधकोंके समष्टि और व्यष्टि साधनासे सम्बन्धित कुछ सन्देश देना हो, इस हेतु हमें पहले ‘फेसबुक’पर और अब ‘व्हाट्सऐप्प’पर गुट बना रखा है;किन्तु जिस दिवस मैंने उनसे बात की थी तो उस दिवस मैं प्रातः तीन बजे जब अपने नित्य कर्मसे निवृत्त होकर ध्यान हेतु जा रही थी तो ऐसे विचार आया कि प्रकाश भैयाकी पत्नीसे बात करनी चाहिए और मैंने उसे ईश्वरीय सन्देश मानकर, उन्हें दूरभाष किया और तब मुझे ज्ञात हुआ कि वे ईश्वरसे सहायता हेतु विनती कर रहे थे । विदेश धर्मयात्राके मध्य जब मैं जर्मनी गई थी तो इनके घर दो बार रुकी थी और सम्पूर्ण परिवारने भावपूर्वक सेवा की थी ।हम भी इनके उपकारको कैसे भूल सकते हैं ? – सम्पादक)
जीवन दान देनेके लिए हम सभी मांके प्रति सदा कृतज्ञ रहेंगे । इतनी बडी दूरीपर भी मांने मात्र अपने संकल्पसे हमारे छोटेसे परिवारको बचा लिया । मांके श्री चरणोंमें कोटि-कोटि नमन एवं बारम्बार कृतज्ञता । (४.३.२०१६)
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२.
मांकी कृपासे केलेका पेड, पडोसमें मिल जाना
इस बार उपासनाके गुरुपूर्णिमाके महोत्सवमें सहभागी होनेके लिए, इटलीमें रहनेवाले साधक बृज अरोडाजीके पास जानेका सुअवसर मिला । एक दिन पूर्व ही हम दोनों पति-पत्नी, उनके पास सवेरे-सवेरे पहुंच गए । पूरा दिवस हम उनके घरपर रहे । उन्होंने एक मन्दिरमें गुरु-पूर्णिमाके कार्यक्रम हेतु बात कर रखी थी । वहांपर जो स्थान व आसन गुरुपूजनके लिए सजाना था, उसके लिए गुरुपूजाके पटलको चारों ओरसे केलेके पत्ते लगानेके लिए बताया गया था । केलेके पत्ते लानेके लिए भी किसी सज्जन मित्रको बोल रखा था । बहुत ढूंढनेपर भी उनको पत्ते नहीं मिले । बृजजी स्वयं भी ढूंढनेमें लगे हुए थे; परन्तु कहीं भी नहीं मिल रहे थे । एक स्थानपर, किसीके आंगनकी वाटिकामें (बगीचेमें) केलेके पत्ते मिल भी गए; किन्तु वहांकी स्वामिनी, एक वृद्ध स्त्रीने किसी कारणवश, वे पत्ते देनेसे मना कर दिया तो बृज भाई निराश होकर वापस लौट आए । जब वो अधिक चिन्तित हुए तो उनकी धर्मपत्नीने भी उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि ऐसे स्थानपर जब कोई आवश्यक वस्तु कहीं नहीं मिलती तो क्या किया जा सकता है ?, जब मिलनी होगी तो मिल जाएगी । यदि नहीं मिलनी होगी तो भगवानकी इच्छा ।
सायंकालके समय उन्हें अपने भण्डारगृहसे (गोदामसे) कुछ वस्तु अपनी आपणीके (दूकानके) लिए लाना था तो मैं भी उनके साथ निकल गया । उनकी ‘दूकान’पर कार्य करनेवाला एक कर्मचारी भी साथमें था, जिसको उन्होंने, ‘गोदाम’से वाहनमें भारी वस्तुओंको लादने हेतु साथमें ले लिया था। मार्गमें ३-४ स्थानोंपर, जहां हरियाली व पेड-पौधे थे, वहांसे वाहन घुमाकर ले गए तो भी किसी केलेके वृक्षका दर्शन नहीं हुआ । तब बृजजी निराश होकर कहने लगे कि अब क्या करें?, चलो, गोदामसे वस्तु लेकर आते हैं? मैंने उनसे कहा कि आप मांपर ही छोड दें तो अच्छा होगा और मन ही मनमें मांसे प्रार्थना की कि इस सेवामें सहायता करें !
अभी हम उनके गोदामसे प्रायः बीस मीटरकी दूरीपर ही थे कि वाहनमें पिछली गद्दीपर बैठे, उनका कर्मचारी चिल्लाया, “वो रहे केलेके पत्ते ।”हम दोनोंने भी आश्चर्यसे पूछा, “कहां हैं ?”
विश्वास ही नहीं हो रहा था। बीस मीटर वाहन चलाकर, अपने गोदामके आगे वाहन खडा कर, एक अस्त-व्यस्त वनीय उद्यानकी ओर चल पडे, पता करनेके लिए कि इन सबका स्वामी कौन है ? आश्चर्य कि उस उद्यानकी स्वामिनी तो वही अधेड आयुकी अफ्रीकन स्त्री थी, जिनसे इन्होंने गोदाम भाडेपर लिया हुआ था । उसने तुरन्त प्रसन्नतापूर्वक पत्ते ले जानेकी स्वीकृति दे दी। हमने ८-९ पत्ते, डण्ठल सहित काटकर साथमें ले लिए, जिनमेंसेछांटकरचार पत्ते मन्दिरमें उपयोगमें आए। शेष काटते-छांटते समय, पासवाले दूसरे कांटेदार पौधोंसे लगकर फट गए थे।
उस भली मानस अफ्रीकन स्त्रीने कहा कि आगेसे, जब भी आवश्यकता हो तोआप ले जा सकते हैं, नहीं तो इन्हें उखाडकर फेंकनेमें मुझे ही परिश्रम करना पडता है । वहांसे, आनेसे पहले बृजजीने उसे दो किलो बासमती चावलका पारितोषक दिया, (बृजभैया, इटली बासमती चावलका व्यवसाय करते हैं) । प्रत्युत्तरमें उसने भी ईश्वरकृपा कहकर शुभकामनाएं दीं । इस प्रकार आगेके लिए केलेके पत्ते ढूंढनेमें समय व्यर्थ न हो, ऐसी व्यवस्था भी गुरुने बृजजी हेतु कर दी । (२२.९.२०१६)
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३. मांके सूक्ष्म संकल्पके कारण सूक्ष्म देहसे गोवाकी यात्रा एवं सकुशल वापसी कर पाना

मैं कभी गोवा नहीं गया और न ही वहांपर स्थित गुरुदेवका आश्रम देखा है । योगनिद्रा भी पहले कभी नहीं की थी । पितृपक्षके शिविरके मध्य एक दिवस मांने योग निद्राका अभ्यास करवाया और इसी क्रममें सूक्ष्मसे कैसे प्रवास करते हुए अपने गुरुके स्थानपर जा सकते हैं ?, यह बताया । योगनिद्राके मध्य हम सभी साधकोंको परात्पर गुरु डॉ. आठवलेके कक्षमें मांने अपने संकल्पसे सूक्ष्मसे पहुंचा दिया और रामनाथी आश्रमका दृश्य भी दिखाकर, वापसले आईं । रामनाथी आश्रमके भवनमेंसे श्वेत प्रकाश निकल रहा था और यह सूक्ष्म भावयात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय है । मांसे सूक्ष्म जगत और सूक्ष्म यात्राके विषयमें सुनते और उनके लेखोंमें पढते रहते थे; किन्तु उस दिवस उन्होंने उसकी अनुभूति भी करवाकर दी । इस सूक्ष्म यात्राके लिए मांके चरणोंमें कोटि-कोटि नमन एवं कृतज्ञता । – १४.१०.२०१८

४. मांके मार्गदर्शनसे चायका व्यसन सदाके लिए छूट जाना

तनुजा मांने कई बार अपने लेखों एवं श्रव्य धर्मधारा सत्संगमें बताया कि चाय एक तमोगुणी पेय है; परन्तु इस विषयमें सब पढकर और सुनकर भी अनसुना जैसा कर दिया करता था । संयोगवश पिछले एक माहमें हमारे निवासपर बहुत लोगोंका आना-जाना हुआ और इसके साथ-साथ विवाह, सगाई, जन्मोत्सव, प्रीतिभोज तथा श्राद्ध आदि कारणोंसे हमारा जाना भी बहुत हुआ, जिस कारण बहुत ही अधिक चाय पी और एक संस्कार-सा बन गया ।

इस माह जब एक बार फिर गुरुमाताने ‘व्हाट्सऐप’पर तथा सत्संगमें तमोगुणी चायसे हानिके बारेमें बताया तो ध्यानमें आया कि मैं भी तो प्रतिदिन कई प्याले चायके पीने लगा हूं तो मनमें आया कि इससे छुटकारा पाने हेतु मनको पक्का करना होगा । केवल ‘व्हाट्सऐप’पर लिख कर सबको बताना, ढिंढोरा पीटना, अपनी वाह-वाही करवाना इससे तो मात्र अहं बढाना हुआ, खरे अर्थोंमें मैं चाय पीकर, मांकी अवज्ञा कर रहा हूं । और यह सोचना कि कौन मुझे देख रहा है ? और इस चूकको बार-बार लिखना, समय व्यर्थ करना है; इसलिए किसीको भी बतानेसे पहले अपने मनमें संकल्प लिया कि मैं पन्द्रह दिनोंतक चाय नहीं पिऊंगा । इसके पश्चात कभी किसी विशेष अवसरपर विवश होना पडा तो परेच्छा समझकर आधा प्याला लूंगा, वो भी सोच समझकर। मेरा सकंल्प मांकी कृपासे निर्विघ्न पूर्ण हुआ । उन १५ दिनोंके पश्चात अगले १५ दिवस और भी निकल गए और अब चाय पीनेको मन ही नहीं करता । अन्तर्मुखता बढानेवाले सर्वज्ञ गुरु तत्त्वके प्रति कृतज्ञता । – १२.८.२०१८

५. कारयानमें नामजप चलते अद्भुत सुगन्धका यात्रीको अनुभव होना ।

एक महिला हमारी गाडीमें पिछली’सीट’ गद्दीपर बैठ गई । कुछ दूरी व्यतीत होनेके पश्चात उसने पूछा कि क्या आपकी गाडीमें फूल रखे हैं ? तो मैंने उत्तर दिया कि नहीं तो, आपको इस समय (आधी रात) फूल कहीं भी नहीं मिल सकते । उन्होंने कहा कि उसे फूल चाहिए भी नहीं; किन्तु आपकी गाडीमें नूतन फूलोंकी अद्भुत एवं बहुत सुन्दर सुगन्ध आ रही है । मैंने उसे बताया कि गाडी नूतन है; इसीलिए आपको ऐसा लग रहा होगा; किन्तु उसने कहा कि उसे बहुत अच्छी सुगन्ध आ रही है, वैसी ही जैसे उसे पिछले वर्ष भारतमें तीन माह’मेडिटेशन’ ध्यान सीखते सुगन्ध आया करती थी । उन्होंने पुनः पूछा कि आप भी ध्यान (मेडिटेशन)करते हैं क्या? दो मिनिटके पश्चात शुल्क देकर वह गाडीसे उतर गई । पीछे मुडकर देखना चाहा कि वह कौन है ?, तबतक वह जा चुकी थी और बाहर भी कहीं दिखाई नहीं दी, ओझल हो गईं । कुछ समय पश्चात ध्यानमें आया कि रातभर गाडीमें मांकी ध्वनिमें नामजपकी ध्वनि चक्रिका (मांद्वारा दी गई) लगातार चलती रहती है, सम्भवतः उसीका प्रभाव हो । यह सब क्या था ?, विदेशमें वे देवी कौन थीं ?, मेरी समझसे परे है; किन्तु मां आपकी इस विशेष कृपा हेतु बारम्बार कृतज्ञता, प्रणाम ! ऐसा एक बार पहले भी किसी स्त्रीने कहा था; किन्तु विशेष ध्यान नहीं दिया था । – २०.१२.२०१८

६. इन्दौरके परम पूज्य भक्तराज महाराजके आश्रममें नामजप हेतु बैठनेपर समाधि जैसी अवस्थाकी अनुभूति होना

अक्टूबर २०१८ में वैदिक उपासना पीठके आश्रममें प्रवासके मध्य मांने बाबाके (इस आश्रमका नाम भक्तवात्सल्य आश्रम है और यह इन्दौरमें स्थित है) आश्रमके चैतन्यका महत्त्व बताया और वहां बैठकर नामजप करने एवं आनन्द लेनेका कहा ।

बाबाके सिद्ध आश्रममें नामजप हेतु बैठनेपर कुछ ही क्षणोंमें समाधि लग गई, जबकि ऐसी अनुभूति पूर्वमें कभी नहीं हुई थी । ऐसा आनन्द दिलानेके लिए मांके प्रति कृतज्ञता । (यह आपके नियमित साधना और सेवाके कारण हुआ, गुरु तत्त्व साधकके भाव अनुरूप कार्य करता है – सम्पादक) (२२.११.२०१८)

७. सवेरे ८ बजे फ्रेंकफर्ट रेलवे स्टेशनपर पहुंचनेपर देखा कि स्थानीय रेल २० मिनट विलम्बसे चलनेवाली थी । इतने समयमें यूट्यूबपर वैदिक उपासना चैनलमें      (http://www.youtube.com/channel/UCJo24kpOckCT51P_2wEjE8Q)तनुजा मांका सत्संग देखना आरम्भ किया और उसीमें इतना खो गया कि कुछ और पता ही नहीं चला । जब सुध हुआ तो ध्यानमें आया कि ९ बज चुके हैं । स्थानीय रेलयान दो बार आकर जा चुकीं थीं । अगली रेलयानसे घर दस बजे पहुंचा । सात्त्विक स्पन्दनोंका लम्बे समयतक अनुभव होता रहा । सोनेसे पहले भी वही सत्संग चलाकर सोया । पूरा दिवस भी आनन्दमें बीता एवं परिवारमें भी शान्ति बनी रही । नकारात्मक विचार भी नहीं आए एवं थकावट भी अनुभव नहीं हुई । विदेश जैसे तमोगुणी स्थानपर भी अपनी दिव्य वाणीद्वारा ऐसी दिव्य अनुभूति देने हेतु आपके श्रीचरणोंमें कोटि-कोटि कृतज्ञता – प्रकाश चानना, जर्मनी (३.९.२०१८)



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