अपने घरकी रंगाई-पुताई प्रत्येक वर्ष करें 


वर्तमानकालमें सभीके घरोंमें आधुनिक उपकरण एवं अन्य वस्तुओंका प्रमाण अत्यधिक होनेके कारण अनेक लोग घरकी रंगाई-पुताई ऐसे रंगसे (पेंटसे) करते हैं, जिससे वे अनेक वर्ष ‘गन्दे’ न हों या निकले नहीं और उन्हें प्रत्येक वर्ष रंगाई-पुताईका श्रम न करना पडे । मैंने अपने सूक्ष्म शोधसे पाया है कि गोबर एवं मिट्टीकी पुताईके पश्चात, चूनेकी पुताई सबसे सात्त्विक होती है, शेष सभी कृत्रिम रसायनोंसे बने रंग राजसिक या तामसिक होते हैं एवं यदि ऐसे रंगोंसे रंगाई-पुताई किए हुए घरमें अनेक वर्ष रंगाई-पुताई न हों एवं उस घरके सदस्य अध्यात्मशास्त्र अनुसार या किसी सन्तके मार्गदर्शन अनुसार साधना न करते हों तो उस वास्तुकी भीतोंपर (दीवारोंपर) सूक्ष्म काला आवरण आ जाता है ।  यहांपर एक विशेष तथ्य बता दें कि यदि कोई व्यक्ति अपने घरमें योग्य साधना करता हो या उस घरसे अधिकसे अधिक सदस्य साधनारत हों तो अनिष्ट शक्तियोंद्वारा निर्मित किया गया सूक्ष्म काला आवरण साधनाके कारण नष्ट होते रहता है; किन्तु धर्मशिक्षणके अभावके कारण एक तो हिन्दू योग्य साधना नहीं करता है एवं आज सौ प्रतिशत घरोंमें पितृदोष भी है; इसलिए साधनाके आभावमें घरमें आध्यात्मिक कष्टकी तीव्रता अधिक होती है । ऐसेमें यदि लिपाई-पुताई भी नियमित न हो तो घरकी वास्तु नकारात्मक हो जाती है ।

लिपाई-पुताई नियमित न होनेके कारण घरमें अनावश्यक वस्तुओंका भी ढेर लग जाता है; इसीलिए हिन्दू धर्ममें प्रत्येक दीपावली हम अपने घरकी लिपाई-पुताई करते थे ।

शिवत्वहीन विज्ञानने पुनः यहां भी सेंध मारी और हमें कृत्रिम रासायनिक तत्त्वोंसे बने ऐसे रंग दे दिए जिससे हमें अपने भीतोंको पांचसे सात वर्षतक रंगनेकी आवश्यकता नहीं पडती है; किन्तु हमारे द्रष्टा मनीषियोंको यह ज्ञात था कि लिपाई-पुताईका प्रत्येक वर्ष होना आवश्यक है; क्योंकि इससे मात्र स्थूल स्वच्छता नहीं होती है अपितु सूक्ष्म स्वच्छता भी होती है । इस दृष्टिकोणका ध्यान रख यदि प्रत्येक वर्ष सम्भव न हो तो न्यूनतम (कमसे कम) तीन वर्ष उपरान्त घरकी रंगाई-पुताई अवश्य करें तथा घरसे प्रत्येक वर्ष अनावश्यक वस्तुओंको हटाएं, जिनका उपयोग आप नहीं कर रहे हों या जो टूट-फूट गई हो अथवा पुरानी हो गई हो, उसे घरमें एकत्रित कर न रखें ! ध्यान रहे, हम अपने घरमें अपनी सुख-सुविधाओंके लिए जितने अधिक आधुनिक शिवत्वहीन विज्ञानके उपकरणोंका उपयोग करते हैं, हमारी वास्तु उतनी ही अशुद्ध हो जाती है, इस हेतु योग्य साधना एवं आपको जो हमने वास्तुशुद्धिके स्थूल और सूक्ष्म प्रयत्न बताए हैं, उसे नियमित करनेका प्रयास करें ! इन सब तथ्योंकी मैंने पिछले अनेक वर्षोंके धर्मप्रसारके मध्य, जब लोगोंके घरोंपर रहना हुआ है, तब इसकी अनुभूति ली है ।

एक उदाहरण यहां बताती हूं कि कैसे यदि लिपाई-पुताई नियमित न हो और घरमें किसीकी साधना प्रगल्भ हो तो उसका वास्तुपर क्या प्रभाव पडता है ? अक्टूबर २०१२ में मैं चेन्नईमें एक साधकके एक सम्बन्धीके घर गई । उनका घर एक सामान्य मध्यमवर्गीय घर जैसा ही था । घर व्यवस्थित था; किन्तु तीन-चार वर्ष या उससे अधिक समयसे घरमें पुताई नहीं हुई थी; वह तो हमें समझमें आ ही जाता है, यह आपको ज्ञात ही होगा, मुझे किसी भी स्थानपर जाते ही वहांके वास्तुके स्पन्दन स्वतः ही आने लगते हैं । उस घरमें मैंने पाया कि वास्तुके स्पन्दन सामान्यसे बहुत अच्छे थे, कारण जानने हेतु उनके पूजाघरमें गई कि वहांसे वास्तुमें कुछ प्रक्षेपित हो रहा है क्या ? मेरे वृत्ति शोधात्मक रही है; इसलिए कुछ भी विशेष अनुभूति होनेपर मैं उसका कारण जानना चाहती हूं । उस घरका पूजाघर भी एक सामान्य दक्षिण भारतीय घरके समान था, जहां अनेक देवी-देवताओं एवं कुछ सन्तोंके चित्र रखे थे और पूजाघरमें मुझे कुछ विशेष अनुभूति नहीं हुई, तो मैं सोचने लगी कि घरका स्पन्दन इतना अच्छा है कैसे ? कुछ तो निश्चित कारण होगा ही, इतनेमें उस घरके मुखिया जिनकी आयु प्रायः ५५ वर्ष होगी, वे आए और मुझे नमस्कारकर, मेरे समक्ष बैठ गए । मुझे वे मितभाषी एवं सज्जन प्रवृत्तिके व्यक्ति लगे । घरमें सबसे कुछ समय वार्तालाप करनेपर मुझे भान हुआ कि उन सज्जन व्यक्तिसे बहुत अच्छे स्पन्दन आ रहे थे, जो सम्पूर्ण वास्तुमें पसर रहे थे । मुझे वास्तुके सात्त्विक होनेका कारण ज्ञात हो गया । मैंने उनके घरके सदस्योंसे पूछा कि इनका आध्यात्मिक स्तर तो बहुत ऊंचा है, क्या आपको यह ज्ञात है ? उन सज्जनकी युवा पुत्रियोंने कहा, “ये वैसे तो पूजा-पाठ अधिक नहीं करते हैं; किन्तु सभीसे बहुत प्रेम करते हैं, सबकी निष्काम भावसे सहायता करते हैं, कभी क्रोधित नहीं होते हैं और जिस विभागमें पदस्थ हैं, वहां वे प्रत्येक माह लाखों रूपये उत्कोच (घूस) लेकर अर्जित कर सकते हैं; किन्तु ये अपने आदर्शोंके पक्के हैं; इसलिए कभी अधर्म नहीं करना चाहते हैं ।”

मैंने यह सब सुनकर उन्हें बताया कि उनके पिताजीका आध्यात्मिक स्तर ६०% है और वे कर्मयोगसे साधना कर रहे हैं; इसलिए आपके वास्तुमें भी इतने अच्छे स्पन्दन हैं । उन सज्जन व्यक्तिने संकोचसे विनम्रतासे कहा, “सब ईश्वरकी कृपा है, कृपया यह सब बोलकर मेरा अहं न बढाएं, मुझसे साधना इत्यादि विशेष नहीं हो पाती है, मैं तो मात्र अपना कर्म करता हूं और उसे निष्ठासे करता हूं और यही मेरे लिए पूजा है ।” इससे वास्तुमें साधनाका महत्त्व समझमें आता है ।



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