* वमन : इसके १० ग्राम रसमें, १० ग्राम ‘प्याज’का रस मिलाकर पिलानेसे लाभ होता है ।
* बहुमूत्र : इसके २ चम्मच रसमें मिश्री मिलाकर, प्रातः एवं सायं सेवन करनेसे लाभ होता है ।
* अर्शजनित वेदना : दुरालभा और पाठा, बेलका गूदा और पाठा, अजवाइन व पाठा अथवा सोंठ और पाठा, इनमेंसे किसी एक योगका सेवन करनेसे अर्शजनित वेदनाका शमन हो जाता है ।
* मूत्रकृच्छ्र : सोंठ, कटेलीकी जड, बला मूल, गोखरू, इन सबको २-२ ग्रामकी मात्रामें तथा १० ग्राम गुडको, २५० ग्राम दूधमें उबालकर प्रातः एवं सायं पीनेसे मल-मूत्रकी रुकावटका, ज्वरका तथा शोथका नाश होता है ।
* अण्डकोषवृद्धि : इसके १० से २९ ग्राम स्वरसमें दो चम्मच मधु मिलाकर पीनेसे वातज अण्डवृद्धि मिटती है ।
* कामला : अदरक, त्रिफला और गुडको एक करके देनेसे कामला मिटता है ।
* अतिसार :
– सोंठ, खस, विलगिरी मोथाधा, धनिया, मोचरस तथा नेत्रबालाका क्वाथ अतिसार नाशक तथा पित्त-कफज्वर नाशक है ।
– धनिया १० ग्राम, सोंठ १० ग्राम इसका विधिवत क्वाथ करके, रोगीको प्रातः एवं सायं सेवन कराना चाहिए । इसके सेवनसे वातश्लेष्मज्वर, शूल और अतिसार नष्ट होता है ।
– सोंठ और इन्द्र जौ, समभाग चूर्णको चावलके पानीके साथ पीनेको दें ! जब चूर्ण पच जाए, तो उसके पश्चात चांगेरी, तक्र और दाडिमका रस डालकर पकाई गई यवागू, अतिसारके रोगीको खानेके लिए दें !
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