घरका वैद्य – बथुआ (भाग-२)


घटक : वनस्पति विशेषज्ञोंके अनुसार, बथुएमें लौह, सोना, क्षार, पारा, ‘कैरोटिन’, ‘मैग्नीशियम’, ‘कैल्शियम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘पोटैशियम’, ‘प्रोटीन’, वसा तथा ‘विटामिन-सी’ व ‘बी-२’ पर्याप्त मात्रामें पाए जाते हैं । इनके अतिरिक्त इसमें ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘राइबोफ्लेबिन’, ‘नियासिन’, तांबे और लोहेकी मात्रा अधिक होती है तथा इसमें ‘थायमिन’ भी पाया जाता है ।
बथुएमें पाए जानेवाले पोषक तत्त्व प्रति १०० ग्राम मात्राके अनुसार : जल ८४ ग्राम, प्रोटीन ३ ग्राम, ऊर्जा ४४ ‘किलो कैलोरी’, ‘कार्बोहाइड्रेट’ ७ ग्राम, ‘फाइबर’ १ ग्राम, लौह ४ ग्राम, ‘कैल्शियम’ २८० मिली ग्राम, वसा ८ ग्राम, ‘फॉस्फोरस’ ८१ मिली ग्राम, ‘राइबोफ्लेबिन’ ४ मिली ग्राम, ‘विटामिन ए’ ११ मिली ग्राम, ‘नियासिन’ ३ मिली ग्राम, ‘विटामिन सी’ ९० मिली ग्राम और ‘थायमिन’ १५ मिली ग्राम पाए जाते हैं ।
यदि हम बथुएके बीजकी, प्रति सौ ग्रामकी गणना करते हैं, तो इसमें ऊर्जा ४०० ‘किलो कैलोरी’, वसा ७ ग्राम, कार्बोहाइड्रेट ६६ ग्राम और प्रोटीन १६ ग्राम होता है ।
मानव स्वास्थ्यके लिए बथुआ बहुत ही लाभकारी होता है । बथुएके लाभ विभिन्न प्रकारके रोगोंको रोकने और उनसे मुक्ति पानेके लिए उपयोग किया जाता है । बथुएका उपयोग कई पारम्परिक औषधियोंके निर्माण हेतु किया जाता है । इस कारण बथुएका उपयोग चिकित्सा प्रयोजनोंके लिए एक अच्छा विकल्प है ।
स्तन ‘कैंसर’से बचानेमें बथुएके लाभ : अधेढ आयुकी महिलाओंमें स्तन-कर्क रोग (कैंसर) एक सामान्य रोग बनता जा रहा है । अध्ययनोंसे पता चलता है कि बथुआ स्तन ‘कैंसर’के विरुद्ध हमारी सहायता करता है । बथुएके पत्तोंमें ‘एंटी कार्सिनोजेनिक’ गुण होते हैं; इसलिए बथुएका सेवन करनेसेयह उन ‘हार्मोन’के विकासको रोकते हैं, जो कर्करोगके लिए उत्तरदायी होते हैं । इस हेतु बथुएके कोमल पत्ते और डण्ठलोंका उपयोग किया जा सकता है । इन्हें कुचलकर, इनका रस निकालें और प्रतिदिन १० से १५ ग्रामतक सेवन किया जा सकता है ! इस रसको जलके साथ या बिना जलके भी उपयोग किया जा सकता है ।



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