घरका वैद्य – जल तत्त्वद्वारा प्राकृतिक चिकित्सा (भाग-१)
जैसे कि आपको बताया ही था कि निकट भविष्यमें विश्वयुद्ध होगा एवं ऐसे समय ‘एलोपैथी’की औषधियां मिलना भी अत्यन्त कठिन हो जाएगा; अतः कालकी मांग है कि हम आयुर्वेदके उपांगोंके अनुसार चिकित्सा पद्धतिको सीखना आरम्भ कर दें ! इन चिकित्सा पद्धतिको वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति कहना, इन शास्त्रोंका एक प्रकारसे अपमान करना है, यथार्थमें वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति तो ‘एलोपैथी’ है, आयुर्वेदसे निकली समस्त चिकित्सा पद्धतियां मूल चिकित्साएं हैं एवं जल एक सहज उपलब्ध संसाधन है; अतः आजसे हम इस तत्त्वके माध्यमसे प्राकृतिक चिकित्सा कैसे कर सकते हैं ?, यह जानेंगे !
ब्रह्माण्डकी उत्पत्तिमें पंचतत्त्वका योगदान : पंचतत्त्वको ब्रह्माण्डमें व्याप्त स्थूल एवं सूक्ष्म वस्तुओंका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है । सांख्यशास्त्रमें, प्रकृति इन्ही पंचभूतोंसे बनी है, ऐसा माना गया है । ब्रह्माण्डमें प्रकृतिसे उत्पन्न सभी वस्तुओंमें पंचतत्त्वकी भिन्न मात्रा उपस्थित है । योगशास्त्रके अनुसार अन्नमय शरीर भी इन्हींसे बना है । सामान्यतः लोक भाषामें इन्हें क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा कहते हैं ।
‘शिव स्वरोदय’ एक प्राचीन तान्त्रिक ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ शिव और पार्वतीके संवादके रूपमें है । इसमें कुल ३९५ श्लोक हैं । ग्रन्थके आरम्भमें माता पार्वती भगवान शिवसे पूछती हैं, “हे प्रभु ! मेरे ऊपर कृपा करके सर्व सिद्धिदायक ज्ञान कहें, यह ब्रह्माण्ड कैसे उत्पन्न हुआ ?, कैसे स्थित होता है ?, और कैसे इसका प्रलय होता है ?, हे देव, ब्रह्माण्डके निर्णयको बताएं । महादेवजी बोले –
तत्त्वाद् ब्रह्याण्डमुत्पन्नं तत्त्वेन परिवर्त्तते ।
तत्त्वे विलीयते देवि तत्त्वाद् ब्रह्मा़ण्डनिर्णयः ।।
अर्थ : तत्त्वसे ब्रह्माण्डका निर्माण हुआ है, इसीसे इसका पालन होता है और इसीसे इसका विनाश होता
है । निराकार और निर्गुण शिवसे आकाश उत्पन्न हुआ, आकाशसे वायु, वायुसे अग्नि, अग्निसे जल और जलसे पृथ्वी उत्पन्न हुई है, इसीसे ब्रह्माण्डका निर्माण हुआ है और अन्तमें सब तत्त्वमें विलीन हो जाता है, तदुपरान्त सूक्ष्म रूपमें तत्त्व ही रमण करता है ; इसीलिए वायुके पश्चात जल हमारे जीवनमें सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है । जब हम तत्त्वके रूपमें जलको जाननेका प्रयास करते हैं तो हम पाते हैं कि यही वह तत्त्व है, जो सृष्टिके निर्माणके पश्चात जीवनकी उत्पत्तिका कारण बना ।
आयुर्वेदकी भाषामें इसे समझें तो जल, श्रमकी थकान दूर करनेवाला, अचेतन अवस्था (बेहोशी) और तृष्णा मिटानेवाला, दुःख नाशक, असमय आनेवाली नींदको मिटानेवाला, आलस्यको भगाने वाला, तृप्तिकारक, हृदयका मित्र, शीतल, हलका और अमृतके समान जीवनका सबसे बडा सहायक तत्त्व है ।
Leave a Reply