घरका वैद्य – प्राणायाम चिकित्सा (भाग-२)
अनुलोम-विलोम प्राणायाम कब करें ?
समय : अनुलोम-विलोम प्राणायाम प्रातःके समय सूर्योदयके पहले करना अति गुणकारी होता है । इस व्यायामको करनेसे पहले पेट खाली कर लेना चाहिए । अनुलोम-विलोम भोजन या अल्पाहार करनेसे पहले ही करना चाहिए । अनुलोम-विलोम कर लेनेके पश्चात एक घण्टेके पश्चात ही कुछ खाना चाहिए । अनुलोम-विलोम सन्ध्याके समय भोजन करनेके पूर्व भी किया जा सकता है; किन्तु इस प्राणायामको प्रातः करनेसे अधिक लाभ होता है ।
आसन : अनुलोम-विलोम प्राणायामका अभ्यास किसी शान्त वातावरणमें करना चाहिए । अनुलोम-विलोम स्वच्छ प्राकृतिक वायुमें अधिक फलदायी प्रमाणित होता है; इसलिए सर्वप्रथम उत्तम स्थानका चुनाव करके, वहां एक चटाई बिछाकर पद्मासन, अर्द्ध पद्मासन, सुखासन या वज्रासनमें बैठना चाहिए ।
विधि : अनुलोम-विलोमके लिए, ऊपर बताए अनुसार आसन जमा लेनेके पश्चात इस प्राणायामका अभ्यास सबसे पहले बाईं नासिकासे प्रारम्भ करना होता है । अब दाएं हाथके अंगूठेसे नाकके दाएं छिद्रको बाधित (बन्द) करना होता है और इसी अवस्थामें बाएं छिद्रद्वारा धीरे-धीरे सांस शरीरके भीतर लेनी होती है ।
सम्पूर्ण रीतिसे सांस शरीरके भीतर लेनेके पश्चात बाधित किए हुए दाएं छिद्रको मुक्त करना होता है और ठीक उसीके साथ, मध्यमा अंगुली या अनामिका अंगुलीसे बाएं छिद्रको बाधित करना होता है । शरीरके अन्दर भरी हुई सांस अब धीरे-धीरे दाएं छिद्रसे बाहर निकालनी होती है ।
अनुलोम-विलोम प्राणायामकी गति एंव अवधि : व्यक्तिको अनुलोम-विलोमका प्रारम्भ सदैव धीरे-धीरे सांस भीतर लेने और बाहर छोडनेसे करना चाहिए और जब इस प्राणायामका अभ्यास सहज होने लगे, तब इसकी गति थोडी-थोडी करके बढानी होती है । अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय एक तथ्यका सदैव ध्यान रखना चाहिए कि जिस गतिसे सांस शरीरके भीतर भरें, उसी समान गतिसे सांस, शरीरसे बाहर निकालनी चाहिए ।
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