– तिलके पत्तोंको सिरके अथवा जलमें पीसकर मस्तकपर लेप करनेसे मस्तककी पीडा मिट जाती है ।
– तिलोंको सिरसकी छाल और सिरकेके साथ पीसकर, मुखपर लगानेसे मुहांसे ठीक हो जाते हैं ।
– चोट और मोच होनेपर, तिलकी खलीको जलके साथ पीसकर, उष्ण करके बांधनेसे मोचमें लाभ होता है ।
– तिल और अरंडीको पृथक-पृथक कूटकर, दोनोंको तिल्लीके तेलमें मिलाकर लेप करनेसे चोटकी पीडा मिटती है और सूखा हुआ अंग पुनः अपनी पूर्व दशामें आ जाता है ।
– तिलोंको दूधमें पीसकर मस्तकपर लेप करनेसे सूर्यावर्त्त मिटता है ।
– तिलोंकी पुल्टिस बनाकर घावपर बांधनेसे, घाव शीघ्र भर जाते हैं ।
– सब प्रकारके व्रणोंपर तिल्लीका तेल लगाना अच्छा होता है ।
* कांटा : शरीरमें किसी भी अंगमें नागफनी या थूहरका कांटा यदि घुस जाए और निकालनेमें कठिनाई हो रही हो तो उस स्थानपर तिल्लीका तेल बारम्बार लगानेसे, कुछ समयमें ही वह कांटा बिना परिश्रमके निकल जाता है ।
‘सूजन’ : तिल और मक्खनको पीसकर ‘मालिश’ करनेसे अंगोकी ‘सूजन’ उतर जाती है ।
* विष :
– तिलकी छाल और हलदीको जलमें पीसकर लेप करनेसे, मकडीका विष उत्तर जाता है ।
– तिलोंको पानीमें पीसकर लेप करनेसे बिल्लीके काटेका विष
उतर जाता है ।
– तिलोंको सिरकेमें पीसकर मलनेसे भिरडका (ततैयाका) विष उतर जाता है ।
* विषम ज्वर : तिलोंकी लुगदीको घीके साथ लेनेसे विषम ज्वरमें लाभ होता है ।
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