आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २२.२)


कल हमने आपको गिलोयके विषयमें व इससे होनेवाले लाभके विषयोंमें बताया था । आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभके विषयोंमें जानेंगे ।
* खुजली – हल्दीको गिलोयके पत्तोंके रसके साथ पीसकर खुजलीवाले अंगोंपर लगानेसे और ३ चम्मच गिलोयका रस और १ चम्मच मधुको (शहदको) मिलाकर प्रातःकाल व संध्यामें पीनेसे खुजली समाप्त हो जाती है ।
* मोटापा – नागरमोथा, हरड और गिलोयको समान मात्रामें मिलाकर चूर्ण बना लें । इसमेंसे १-१ चम्मच चूर्ण मधुके साथ दिनमें ३ बार लेनेसे मोटापेमें लाभ मिलता है । हरड, बहेडा, गिलोय और आंवलेके क्वाथके (काढेके) सेवनसे मोटापाकी वृद्धि रुक जाती है । ३ ग्राम गिलोय और ३ ग्राम त्रिफला चूर्णको प्रातःकाल और संध्यामें मधुके साथ चाटनेसे मोटापा न्यून (कम) होता जाता है ।
* हिचकी – सोंठका चूर्ण और गिलोयका चूर्ण समान मात्रामें मिलाकर सूंघनेसे हिचकी आना बन्द हो जाती है ।
* सभी प्रकारके ज्वर – सोंठ, धनियां, गिलोय, चिरायता तथा मिश्रीको समान मात्रामें मिलाकर, इसे पीसकर चूर्ण बना लें । इस चूर्णको प्रतिदिन दिनमें ३ बार, १-१ चम्मचकी मात्रामें लेनेसे सभी प्रकारके ज्वरोंमें लाभ मिलता है ।
* कानकी गन्दगी – गिलोयको स्वच्छ जलमें घिसकर और गुनगुना करके कानमें २-२ बूंद दिनमें २ बार डालनेसे कानका मैल निकल जाता है और पत्तोंके रसको गुनगुना करके कानमें बूंद-बूंद करके डालनेसे कानकी वेदना भी दूर हो जाती है ।
* कोष्टबद्धता (कब्ज)  – गिलोयके चूर्णको गुडके साथ सेवन करनेसे यह रोग दूर हो जाता है ।
* अम्लता (एसीडिटी) – गिलोयके रसका सेवन करनेसे अम्लतासे उत्पन्न अनेक रोग जैसे – पेचिश, पीलिया, मूत्रविकारों (पेशाबसे सम्बन्धित रोग) तथा नेत्र विकारोंसे (आंखोंके रोग) निवारण हो जाता है । गिलोय, नीमके पत्ते और कडवे परवलके पत्तोंको पीसकर मधुके साथ पीनेसे अम्लपित्त समाप्त हो जाता है ।
* रक्त अल्पता (एनीमिया) – गिलोयका रस शरीरमें पहुंचकर रक्त वृद्धि करता है; जिसके फलस्वरूप शरीरमें ‘एनीमिया’ रोग दूर हो जाता है ।
* हृदय दुर्बलता  – गिलोयके रसका सेवन करनेसे हृदयकी दुर्बलता दूर होती है । इस प्रकार हृदयको शक्ति मिलनेसे विभिन्न प्रकारके हृदय सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते हैं ।
गिलोय और काली मिर्चका चूर्ण १०-१० ग्रामकी मात्रामें मिलाकर इसमेंसे ३ ग्रामकी मात्रामें हल्के उष्ण जलसे सेवन करनेसे हृदय वेदनामें लाभ मिलता है ।
* बवासीर, कुष्ठ और पीलिया – ७ से १४ मिलीलीटर गिलोयके तनेका ताजा रस मधुके साथ दिनमें २ बार सेवन करनेसे बवासीर, कोढ और पीलियाका रोग ठीक हो जाता है । इसके अतिरिक्त मट्ठाके (छाछ, तक्र) साथ गिलोयका चूर्ण १ चम्मचकी मात्रामें प्रातःकाल लेनेसे बवासीरमें लाभ मिलता है । २० ग्राम हरड, गिलोय, धनियाको लेकर मिला लें तथा इसे ५ लीटर जलमें पकाएं, जब इसका चौथाई भाग शेष रहे, तब इसमें गुड डालकर मिला दें और इसे प्रातःकाल और संध्यामें सेवन करें, इससे सभी प्रकारकी बवासीर ठीक हो जाती है ।
* मूत्रकृच्छ (पेशाब करनेमें कष्ट या जलन) – गिलोयका रस वृक्ककी (गुर्देकी) क्रियाको तीव्र करके, मूत्रकी मात्राको बढाकर, इसकी बाधाको दूर करता है । वात विकृतिसे उत्पन्न मूत्रकृच्छ (पेशाबमें जलन) रोगमें भी गिलोयका रस लाभकारी है ।
* रक्तप्रदर – गिलोयके रसका सेवन करनेसे रक्तप्रदरमें अत्यधिक लाभ मिलता है ।
* श्वेत दाग (ल्यूकोडर्मा) – इस रोगमें १० से २० मिलीलीटर गिलोयके रसको प्रतिदिन २-३ बार कुछ माह तक रोगके स्थानपर लगानेसे लाभ मिलता है ।
* आन्त्रिक ज्वर (आंतोंका बुखार) – ५ ग्राम गिलोयके रसको थोडेसे मधुके साथ मिलाकर चाटनेसे आन्त्रिक ज्वर ठीक हो जाता है । गिलोयका क्वाथ (काढा) भी मधुके साथ मिलाकर पीना लाभकारी है ।
अगले लेखमें हम गिलोयके (अमृताके) कुछ अन्य लाभों व प्रयोगमें सावधानियोंके विषयमें जानेंगें ।



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