गुरुप्राप्ति हेतु सबसे आवश्यक घटक है, शिष्यके गुणवाला होना | यदि यह गुण न हो तो गुरुप्राप्ति कभी नहीं हो सकती है | शिष्यके गुण प्रगत अवस्थाके साधकोंमें होता है; इसलिए प्रथम साधक, तत्पश्चात एक अच्छा साधक बननेका प्रयास करना चाहिए ! साधक बनने हेतु नित्य यथाशक्ति तन, मन, धन, बुद्धि एवं कौशल्य अर्पणकर ईश्वर या जिस गुरुपर आपकी श्रद्धा है, उनकी सेवा करनी चाहिए, इससे गुरु प्राप्ति शीघ्र होती है ! यहां आपको बता दें कि गुरुपर श्रद्धा होना और गुरु प्राप्ति होना, दो भिन्न तथ्य हैं, वैसे ही जैसे किसी युवकका किसी युवतीसे प्रेम होना और उस युवतीद्वारा उसके प्रेमको स्वीकार करना ! साधकके क्या गुण होने चाहिए, यह हम अपने लेखोंके द्वारा बताते ही रहते हैं, उसे पढकर आत्मसात करनेका प्रयास करें | ध्यान रहे, जबतक आपके त्यागका प्रमाण ५५ % नहीं होगा आपके जीवनमें उच्च कोटिके गुरुका प्रवेश सम्भव नहीं है ! एक ही दिनमें इतना त्यागके स्तरको बढाना सम्भव नहीं है; इसलिए धीरे-धीरे इसे बढानेका प्रयास करें ! ध्यान रहे, गुरु तत्त्व सर्वज्ञ ईश्वरीय तत्त्व होता है, आपके साधनाकी उत्कंठा और त्यागसे आपको मार्गदर्शन अवश्य ही मिलता है ! इसलिए पूर्ण श्रद्धा रखकर स्वयंमें साधकके गुणोंको आत्मसात करनेका प्रयास करें, आपके जीवनमें योग्य गुरुका प्रवेश स्वतः ही हो जाएगा | जैसे हम गुरुको ढूंढते हैं, वैसे ही गुरु भी अपनी साधना या गुरुद्वारा अर्जित ज्ञान, भक्त और वैराग्य रूपी थाती देने हेतु योग्य पात्रको ढूंढते हैं ! कुछ लोग कहते हैं कि कलियुगमें खरे गुरुका अभाव है; किन्तु यह तथ्य भ्रामक है ! यह सत्य है कि धर्म और ईश्वरका भय न होनेके कारण कलियुगमें बहुतसे ढोंगी गुरु हो गए हैं; किन्तु किसी भी कालमें साधकों या मुमुक्षुओंके मार्गदर्शन हेतु पर्याप्त गुरु सदैव ही रहते हैं ! मैं अपने ही जीवन कालमें बहुतसे उन्नत और सन्तोंसे मिल चुकी हूं; इसलिए ऐसा भ्रम न पालें कि सभी गुरु ढोंगी होते हैं ! आपको आपकी पात्रता अनुरूप ही गुरु मिलते हैं, यदि आपको मात्र अपनी स्वार्थसिद्धि करनी है तो आपको ढोंगी गुरु मिलनेकी ९९ % सम्भावना है ! अतः उच्च कोटिके गुरु हेतु अपनी साधनाके तेजको बढायें ! (क्रमश:)
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