हमारे गुरु किसीको गुरुमन्त्र नहीं देते हैं, वे यदि किसीको अति आवश्यक हो तो अवश्य ही कुछ विशेष जप बताते हैं; किन्तु सामान्यत: हमारे श्रीगुरुके यहां गुरुमंत्र देनेकी पद्धति नहीं है ! श्रीगुरुसे जुडनेसे पूर्वसे ही ईश्वरीय कृपासे मेरा अजपाजप होता था और श्रीगुरुने जपके सम्बन्धमें मुझे कभी कुछ बताया नहीं, मेरे सर्वज्ञ सद्गुरु जानते थे कि मेरे हृदयमें नामकी लगन है ही ! वे सार्वजनिक स्तरपर ही सभी साधकोंको जप बताते थे और हमें उसकी सूचना मिल जाया करती थी, इस सम्बन्धमें एक बार उत्स्फूर्त कुछ पंक्तियां भावास्थामें ईश्वरने एक कविताके रूपमें लिखवाए, उसकी कुछ पंक्तियां साझा कर रही हूं, इससे आपमेंसे कुछ लोगोंकी शंकाका समाधान हो जाएगा !
ऐसे हैं हमारे श्रीगुरु !
न दी दीक्षा, न दिया विधिवत गुरुमन्त्र ।
एक दृष्टिसे ही डाला हृदयमें,
अखण्ड नामजपका सूक्ष्म भावयन्त्र ।।
देखे ऐसे अनेक गुरु,
एकत्रितकर भीड देते हैं गुरुमन्त्र ।
तथापि न सिखा पाते अध्यात्मका गूढ तन्त्र ।।
दे दिया ज्ञान, स्थूल और सूक्ष्म अध्यात्मका ।
दिए बिना ही गुरुमन्त्र ।।
हैं ऐसी ऊंचाईपर हमारे श्रीनाथ ।
शिष्यको पूर्ण करने हेतु ।
न आवश्यक है उनके लिए गुरुमन्त्रका बन्धन ।
अहो ! ऐसे श्रीगुरुकी कैसे करुं मैं वन्दन ?
वस्तुत: सत्य यही है कि गुरुमंत्रसे नहीं, गुरुके संकल्पसे शिष्यका कल्याण होता है, यदि गुरुमंत्रसे मोक्ष मिलता तो आज दो लाखकी भीड एकत्रितकर जो गुरुजी गुरुमन्त्र देते हैं, उनके सभी शिष्य जीवनमुक्त हो चुके होते; किन्तु अति विनम्रतासे बता दें कि ऐसे लोगोंमें मुझे आध्यात्मिक प्रगतिके लक्षण तो दूर, सामान्य साधकके गुण भी दिखाई नहीं देते हैं ! गुरुमंत्र, गुरुके प्रति सेवा, समर्पण, त्याग और साधनामें निरंतरतासे फलीभूत होता है !
Leave a Reply