गुरुकी सेवा हेतु इस ब्रह्माण्डके सर्व देवी-देवता, रिद्धि-सिद्धियां सभी तत्पर रहती हैं, ऐसे श्रीगुरुके शिष्यको क्या कभी भी कोई भी लौकिक एवं अलौकिक जगतकी वस्तु अप्राप्य हो सकती है तथापि गुरु, शिष्यको वही देते हैं जिससे उसके भीतर वैराग्य उत्पन्न हो । यदि कोई लौकिक वस्तुके उपभोगसे शिष्य तृप्त होकर, उसमें वैराग्य निर्माण हो जाएगा ऐसा गुरुको लगे तो वे, उसे वह वस्तु अवश्य देते हैं; किन्तु यदि किसी लौकिक वस्तुके प्राप्त होनेसे शिष्यके मायामें लिप्त होनेकी संभावना हो तो गुरु वह वस्तु उसे कभी नहीं देते हैं । सरल शब्दोंमें यह कहा जा सकता है कि गुरुका विशुद्ध हेतु शिष्यको मायासे मुक्त करना है; अतः वे वंदनीय होते हैं !
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