गुरुपूर्णिमामें गुरुपूजन कैसे करें


गुरुपूर्णिमा महोत्सव

यदि किसी साधकको अपने घरमें गुरुपूर्णिमा निमित गुरुपूजन करनेकी इच्छा हो तो इस लेखमें उस संदर्भमें मार्गदर्शन दिया गया है |

१. गुरुपूजनकी तैयारी करनेके संदर्भमें कुछ सूचनाएं

जिन साधकोंमें भाव है, ऐसे साधकको ही गुरुपूजनके लिए चुनें।

स्त्री साधिकाएं भी गुरुपूजनके लिए बैठ सकती हैं ।

पूजापूर्व व उपरांत चौकीके आसपासकी जगह साफ – सुथरी हो, उदा. थाली, फूल इत्यादि ठीकसे रखें हों ।

श्री गुरुका छायाचित्र फूलोंसे पूर्णतः ढका हुआ न हो । श्री गुरुका दर्शन सर्व साधकोंको अच्छेसे हो, इस प्रकार हार व फूल चढ़ाएं ।

पूजाके समय पूजास्थलके आसपास भीड़ न करें । वहां सहायताके लिए किसी एक अनुभवी साधकको रखें ।

२. पूजाके लिए बैठने वाले साधकोंके लिए सूचनाएं

पति – पत्नी स्नान कर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहन कर पूजाके लिए बैठे ।

पति शरीरपर उपरनी (गमछा)लेकर बैठे । पत्नी पतिकी दाईं ओर बैठे

पूजाके समय पूजाकी ही ओर ध्यान दें । आवश्यकता अनुसार ही बोलें ।

अपने समक्ष प्रत्यक्ष सद्गुरु बैठे हैं व हम उनकी पूजा कर रहे हैं ऐसा भाव होना चाहिए ।

३. आरती के संदर्भ में

गुरुपूजनके उपरांत ‘ज्योत से ज्योत …’ आरती बोलनी है यह नीचे दिया गया है । सर्व उपस्थित जिज्ञासु व साधक बैठकर आरती बोल सकते हैं । जो साधक अच्छेसे आरती बोल सकते हैं (कुल ३ से ४ , स्त्री पुरुष साधक) उनसे आरती बोलनेका अभ्यास करवाएं । आरती बोलनेसे पूर्व उनका भावार्थ समझ लें । इस कारण भावकी उत्पत्तिमें सहायता होगी ।

४. गलतियाँ टालनेके लिए व गुरुपूजन ४० मिनटोंमें पूर्ण होनेकी दृष्टिसे रिहर्सल कर लें । इससे गुरुपूजनकें आनेवाली अडचनोंकी पूर्व कल्पना होगी व उसका निदान करना आसान होगा ।

५. गुरुपूर्णिमा कैसे मनाये

१.गुरुपूर्णिमाके लिए आवश्यक सामग्रीकी सूची

२. गुरुपूजनके लिए आवश्यक साहित्य

३. गुरुपूर्णिमाका महत्व

४. एक दिन पहले हॉलकी सफाई व वास्तुशुद्धि

५. बैठक व चप्पल व्यवस्था

६. प. पू. डॉ. आठवले की पूजाके लिए महराबकी तैयारी

७. रंगोली

८.पूजाकी विधि व कृतज्ञता

९. आरती

१०. प्रसाद वितरण

वास्तुशुद्धिके लिए आवश्यक सामग्री :

वास्तुशुद्धिके लिए

१. कंडे ( गायके गोबरका बना हुआ )

२. माचिस

३. कर्पूर

४. धुमना एवं गुगुल

५. धूपदानी

६. उदबत्ती

७. गौ मूत्र

८. तुलसीदल

९. विभूति ( उदबत्ती का जला हुआ राख )

महराबके लिए आवश्यक सामाग्री :

१. एक मध्यम आकारका चौकी

२. एक पीला रेशमी वस्त्र

३. चार केलेके थंब

४. गेंदेके फूलका माला एवं कुछ खुले फूल

५. कागज जो थंबपर लपेटना है

गुरुपूजनके लिए आवश्यक साहित्य ( सामग्री ) :

१. प.पू. डॉ. आठवलेके चित्र २.कुमकुम, ३.हल्दी, ४.चन्दन, ५.सिंदूर, ६.अक्षत (धुले हुए अखंडित चावल ), ७.उदबत्ती, ८.धूप, ९.बाती, १०.कपूर, ११.रंगोली, १२.कलश (दो), १३.एक प्याला व एक आचमनी, १४.ताम्रपात्र, १५. थालियाँ (तीन), १६.कटोरियाँ (चार), १७.समई यानि पीतल के लंबे दिये (दो), १८. निरांजन, १९.पंचारती, २०.घंटी, २१.माचिस, २२.कपास/रुई का वस्त्र, २३.नारियल (पांच), २४.चावल (आधा किलो), २५.सुपारियाँ(पांच), २६. पांच प्रकारके फल (प्रत्येक २), २७.एक रुपये के पांच सिक्के ,२८.गुड़, सूखा नारियल, २९.आधा किलो पेड़ा, ३०. उदबत्ती स्टैंड, ३१. दो पीढ़े चादर सहित, ३२.तुलसी, दूर्वा, बिल्वपत्र ३३.दूध, ३४. दही, ३५.घी, ३६.शहद, ३७. शक्कर । क्रमांक ३३ से ३७ का साहित्य (सामग्री) पंचामृत बनानेके लिए चाहिए ।

१. सर्वप्रथम हम यह देख लेते है की गुरुपूर्णिमाका महत्व क्या है ?

अन्य दिनोंकी अपेक्षा गुरुपूर्णिमाके दिन गुरु तत्व १००० गुना अधिक कार्यरत रहता है , अतः इस दिन किए गए सेवा, त्यागका १००० गुना अधिक लाभ हमें मिलता है । इसलिए हमें इस दिन अधिकसे अधिक नामजप, सेवा आदि करनी चाहिए ।

वास्तुशुद्धि करनेके तरीके :

सर्वप्रथम हम झाड़ूसे कमरेकी सफाई करते हैं, कमरेमें जितने भी जाले लगें हो उन्हे हटाते हैं । फिर साफ पानीसे कमरे को धोते हैं । उसके बाद हम गौ मूत्रमें विभूति और तुलसीदल डालकर आम्रपल्लवसे (आमके पत्तेका गुच्छा ) पूरे कमरेमें उस गौ मूत्रका छिड़काव करते हैं । इसके बाद हम सनातनकी उदबत्ती को पूरे कमरेमें दिखातें हैं और इसके साथ-साथ एक धूपदानीमें गायके गोबरसे बने कंडेको जलाकर उसमें गुगुल या धुमना डालते हैं और उस धुआँको पूरे वातावरणमें फैलने देते हैं । अगर संभव हो तो कमरेमें तनुजा डिडिकी ध्वनि में “श्री गुरुदेव दत्त” का मंत्रजप वाली ध्वनिचक्रिका चला सकते हैं । इस तरहसे हम कमरेकी वास्तुशुद्धि करते हैं ।

६. बैठक व्यवस्था

अब हम बैठक व्यवस्थाकी तैयारी करते हैं । जिसपर जिज्ञासु एवं साधक बैठेंगे ।

हम हॉलमें नीचे दरी बिछाते हैं और दरीके किनारे सबसे पीछेमें कुर्सी भी लगाते हैं ताकि जिन्हे नीचे बैठनेमें कठिनाई हो वो कुर्सी पर बैठे । इस तरहसे हमारी बैठक व्यवस्था भी पूर्ण हो गयी

७ चप्पल व्यवस्था

हॉलके बाहर चप्पलकी व्यवस्था भी करते हैं ताकि जो भी साधक हॉलमें आयें उनको अंतमें अपनी चप्पल ढूंढनेमें परेशानी न हो । हम पुरुषोंके लिए एक तरफ एवं स्त्रियोंके लिए दूसरे तरफ व्यवस्था करते हैं । यहाँपर हम एक साधकको रख सकते हैं ताकि चप्पल अस्त-व्यस्त न हो ।

८. अब हम प. पू. डॉ. आठवलेके लिए महराब बनाएँगे ।

इसके लिए हम एक मध्यम आकारकी चौकीकी व्यवस्था करेंगे । उसपर एक पीला रेशमका वस्त्र चौकीके आकारके अनुसार लेंगे । उसे सफाईसे उस चौकीपर बिछाएंगे, कही भी कोई सिलवट नहीं छोड़ेंगे । अब हम ४ केलेके थंबको अच्छेसे साफ करके उसके निचले हिस्सेमें सफेद कागज ३-४ इंच तक लपेट देंगे ताकि इसका दाग कपड़ेमें न लगे । फिर चारो थंबको चौकीके चारो किनारे लगा देंगे ।

केलेके थंबके पत्तेको इस प्रकार रखेंगेकी दो थंबके पत्ते आपसमें अच्छेसे बैठ जाए । (जैसा की ऊपर चित्रमें दिखाया गया है) अब हम गेंदेके फूलोसे महराबको सजाएँगे एवं खुले फूलोंसे भी सजा सकते हैं ।

९. रंगोली

हम एक सात्विक रंगोली भी बना सकते है जिससे गुरु तत्वका प्रक्षेपण हो और हम उसका लाभ उठा पाए ।

सात्विक रंगोलीके लिए हम सनातनकी लघु ग्रंथ “ सात्विक रंगोली “ को देख सकते हैं ।

हम रंगोली बनानेके लिए सात्विक रंगोंवाली अबीर, पिसा हुआ चावल इत्यादि ले सकते हैं । ( नीचे देखे ) ।

१०. अब हम गुरु पूजन करने की विधि को देखेंगे

नमस्कार,

नमस्कार ! प.पू. डॉ.जयंत बालाजी आठवलेजीको वंदन कर पूजन आरंभ करेंगे ।

आचमन : आगे दिये नामों का उच्चारण करने पर प्रत्येक नामके अंतमें बाएँ हाथसे आचमनीमे पानी लेकर दाईं हथेलीसे पीए – श्री केशवाय नमः, श्री नारायणाय नमः, श्री माधवाय नमः ।

‘श्री गोविंदाय नमः’ का उच्चारण कर हथेलीपर पानी लेकर नीचे ताम्रपत्रमें छोड़े ।

अब आगे के नामोंका क्रमानुसार उच्चारण करें ।

विष्णवे नमः, मधुसूदनाय नमः, त्रिविक्रमाय नमः, वामनाय नमः, श्रीधराय नमः, ऋषिकेशाय नमः, पद्मनाभाय नमः, दामोदराय नमः, संकर्षणाय नमः, वासुदेवाय नमः, प्रद्युमनाय नमः, आनिरुद्धाय नमः, पुरुषोत्तमाय नमः, अधोक्षजाय नमः, नारसिंहाय नमः, अच्युताय नमः, जनार्दनाय नमः, उपेन्द्राय नमः, हरये नमः, श्रीकृष्णाय नमः, ।

अब हाथ जोड़कर शांत मनसे आगेकी प्रार्थना करें ।

प्रार्थना : श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । आदित्यादि नवग्रहदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राहम्णेभ्यो नमो नमः ।

अविघ्नमस्तु । सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक: । लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिप: धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन: । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि । विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटेचैव विघ्नस्तस्य न जायते । शूकलांबरधरम देवं शशिवर्णम चतुर्भुजम । प्रसन्नवदनम ध्यायेत सर्वविघ्नोपशांतये । सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते । सर्वदा सर्वकार्येषु नास्तितेषाममंगलम । येषां हृदिस्थो भग्वान्मंगलायतन हरि: । तदेव लग्नम् सुदिनम् तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि । लाभस्तेषाम् जयस्तेषाम् कुतस्तेषाम् पराजयः । येशमिंदीवरश्यामों हृदियस्थो जनार्दनः । यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम । विनायकम् गुरूं भानुम् ब्रम्हविष्णुमहेश्वरान् । सरस्वतीं प्राणौम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये ।

अभीप्सितार्थं सिद्धयर्थ पूजितों यः सुरासूरै: । सर्वविध्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः । सर्वेष्वारब्धकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशंतु नः सिद्धिम ब्रह्मेशान जनार्दना: ।

अपनी आंखोको पानी लगाकर देशकालका उच्चारण इस प्रकार करें

श्रीमद्भगवतो, महापुरुषस्य, विष्णोर्राज्ञया, प्रवर्तमानस्य, अद्य ब्राहम्णो, द्वितिये परार्धे, विष्णुपद, श्रीश्वेत, वाराह कल्पे, वैवस्वत मन्वंतरे, अष्टाविंशतितमे, युगे- कलियुगे, कलि प्रथम चरणे, भरतवर्षे, भारतखंडे, जम्बुद्विपे, आर्यावर्तैँकदेशे, (जिस जगहपर गुरुपूर्णिमा मनाया जा रहा हो वहाँका नाम लें ।) विक्रमशके, बौद्धावतारे, बर्हस्पत्य मानेन शुभकृत नाम संवत्सरे, उत्तरायणे, ग्रीष्म ऋतौ, महामांगल्यप्रदे, मासोत्तमे मासे। आषाढ़ मासे, शुभे शुक्लेपक्षे, अद्य पौर्निमयमायां तिथौ, अद्य भौम वासरे, पूर्वाषाढ़ा, मूल नक्षत्र, धनु स्थिते, वर्तमाने चंद्रे मिथुनस्थिते श्री सूर्ये, वृश्चिकस्थिते, श्री देवराज गुरौ, शेषेषु, ग्रहेषु यथा यथा राशिस्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ ( यजमान का नाम गोत्रका उच्चारण करें । उदा. कपिगोत्र व नाम केशव है तो ) ‘कपि गोत्रे उत्पन्नः केशव शर्मा अहं मम आत्मनः श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्रित्यर्थम तथा हिंदधर्म रक्षण कार्ये श्री सद्गुरु नाथ देवता प्रित्यर्थं पूजनमहं करिष्ये ।

श्री गणपतिपूजन विधि

(तांबे पात्रमें अथवा पीढ़ेपर चावल डालकर उसपर नारियल रखे व पैन रखेँ । नारियलपर गणपतिका आवाहन आगे दिये गए मंत्रद्वारा करें व पूजा करें ।)

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा । ऋद्धि-बुद्धि –शक्ति महागणपतये नमो नमः । महागणपतिं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकं आवाहयामि । महागणपतये नमः ध्यायामि ।

महागणपतये नमः आवाहयामि । (नारियलपर अक्षत चढ़ाएं ।)

महागणपतये नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि । ( अक्षत चढ़ाएं ।)

महागणपतये नमः । पाद्यम समर्पयामि । (एक आचमनीभर जल डालें । )

महागणपतये नमः । अर्घ्यम समर्पयामि । (एक आचमनीभर जल लेकर उसमे चन्दन, फूल डालकर वह जल नारियलपर डालें ।)

महागणपतये नमः । आचमनीयं समर्पयामि । ( एक आचमनीभर जल डालें ।)

महागणपतये नमः । स्नानं समर्पयामि । (एक आचमनीभर जल डालें ।)

महागणपतये नमः । वस्त्रं समर्पयामि । (अक्षत अथवा रुईका वस्त्र चढ़ाएं । )

महागणपतये नमः । उपवीतार्थे (यज्ञोपवीतं /अक्षतान् ) समर्पयामि । (जनेऊ अथवा अक्षत चढ़ाएं ।)

महागणपतये नमः । चंदनं समर्पयामि । ( नारियलको चंदनका लेप लगाएं । )

ऋद्धि-सिद्धिभ्यां नमः । हरिद्रा कुंकुमं समर्पयामि । ( हलदी-कुमकुम चढ़ाएं । )

महागणपतये नमः । सिंदूरं समर्पयामि । ( सिंदूर लगाएं ।)

महागणपतये नमः । पुजार्थेकालोद्भावपुष्पाणि समर्पयामि । ( फूल चढ़ाएं ।)

महागणपतये नमः । दुर्वांकुरान् समर्पयामि । (दूर्वा चढ़ाएं ।)

महागणपतये नमः । धूपं आघ्रापयामि । (अगरबत्ती से आरती उतारें ।)

महागणपतये नमः । दीपं समर्पयामि । (निरांजनसे आरती उतारें ।)

महागणपतये नमः । नैवेद्यार्थे (गुड-खोपरा /केला ) नैवेद्यम निवेदयामि ।( नैवेद्य दिखाएं ।)

(आंखो पर बायां हाथ रखकर दाएं हाथ में पानीसे भिगोए हुए दूर्वा अथवा फूल लेकर उससे नैवेद्यपर पानी छिड़कें व नैवेद्य दिखाकर आगे का मंत्र बोलें ।

प्राणाय स्वाहा । अपानाय स्वाहा । व्यनाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा । ब्रहम्णे स्वाहा । ( वह फूल अथवा दूर्वा नारियलपर छोड़े ।)

महागणपतये नमः । नैवेद्यम समर्पयामि । मध्ये पानीयं समर्पयामि । उत्तरपोशनं समर्पयामि । हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि । मुखप्रक्षालनं समर्पयामि । करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि । मुखवासार्थे पूगीफलं तांबूलं समर्पयामि । दक्षिणां समर्पयामि । ( समर्पयामि बोलते समय हथेली पर पानी लेकर छोड़ें ।)

महागणपतये नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि । ( कपूरसे आरती उतारें । )

अचिंत्या व्यक्तरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने । समस्त जगदाधारमूर्तये ब्रहम्णे नमः । महागणपतये नमः । मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि । (चंदन, फूल, अक्षत व दूर्वा नारियलपर चढ़ाएं।)

महागणपतये नमः । नमस्कारान् समर्पयामि । ( नमस्कार करें ।)

महागणपतये नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि । (प्रदक्षिणा करें । )

कार्यम् मे सिद्धिमायांतु प्रसन्ने त्वयिधतरि । विघ्नानि नाश्मायांतु सर्वाणि गणनायक ।।

अनया पुजया सकल विघ्नेशवर विघ्नहर्ता महागणपतिः प्रियतां ।( फूल चढ़ाएं ।)

अनेन कृतपूजनेन महागणपतिः प्रियतां । ( दाएं हाथपर पानी लेकर वह ताम्रपात्रमें छोडें ।)

अब दस बार विष्णुका स्मरण करें, नौ बार ‘विष्णवे नमो‘ व अंत में ‘विष्णवे नमः बोलें ।

अब कलश, घंटी व समईपर चंदन, फूल चढाएं । )

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु । कलशाय नमः । कलशे गंगादि तीर्थान् आवाहयामि । कलशदेवताभ्यो नमः । सकल पुजार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । ( कलश पर चंदन, फूल व अक्षत चढ़ाएं ।) आगमार्थं तू देवानां गमनार्थं तु राक्षसाम् । कुर्वे घंटारवं तत्र देवताव्हानलक्षणम् । घंटायै नमः । सकल पुजार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । (घंटीपर चंदन, फूल व अक्षत चढ़ाएं ।)

भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः ।

आरोग्यं देहि पुर्त्रांश्च मतिं शांतिं प्रयच्छ मे ।

दीपदेवताभ्यो नमः । सकल पुजार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि । ( समईपर चंदन, फूल व अक्षत चढ़ाएं ।)

अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोपि वा यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः

।(इस मंत्रका उच्चारण करते हुए तुलसीपत्रको पानीसे भिगोकर उससे पूजासाहित्यपर व अपने शरीरपर छिड़काव करें ।)

अब सद्गुरुका स्मरण करें । अथ ध्यानं –

ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।

द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् ।

भवातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । ध्यायामि ।

(गुरुपूजनमें आगेकी १५ क्रियाएँ हैं, उनमेसे ३से ६ क्रमांककी क्रियाएँ करते समय, प्रत्यक्षमें श्री सदगुरु सामने बैठे हैं ऐसी कल्पना करें फिर हथमें पानी लेकर, गुरुके छायाचित्रपर नहीं, उनके चरणोंमें चढ़ा रहे हैं ऐसा भाव रखकर वह पानी थालीमें डाले ।)

अब प्रत्येक विधिके समय आगे दिया मंत्र बोलकर सद्गुरुकी पूजा करें ।

नमो गुरुभ्यो । गुरुपादुकाभ्यो नमः । परेभ्यः परपादुकाभ्यः । आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यो नमोस्तु लक्ष्मीपति पादुकाभ्यः ।

१. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आवाहयामि (सद्गुरुका मनःपूर्वक आवाहन करें ।)

२. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (प्रतिमापर / मूर्तिपर / प्रत्यक्ष गुरूपर अक्षत चढ़ाएं । )

३. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । पाद्यम समर्पयामि । (चरणोंपर पानी चढ़ाएँ । )

४. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । अर्घ्यम समर्पयामि ।

आचमनीभर जल लेकर उसमे चन्दन, फूल डालकर चढ़ाएँ ।)

५. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आचमनीयं समर्पयामि । (आचमनीसे हथेलीपर जल डालें ।)

६. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । स्नानं समर्पयामि ।

७. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । वस्त्रं समर्पयामि । (वस्त्र अर्पण करें ।)

८. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । उपवीतं समर्पयामि । (जनेऊ अथवा अक्षत अर्पण करें व हाथ जोड़े ।)

९. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । चंदनं समर्पयामि । ( गुरुको चंदन लगाएं ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । मंगलार्थे कुंकुमं समर्पयामि । (कुमकुम चढ़ाएं । )

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । अलंकारार्थे अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत चढ़ाएँ ।)

१०. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । ऋतुकालोद्भाव पुष्पाणि समर्पयामि । ( फूल अर्पण करें व हार चढ़ाएं ।)

११. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । धूपं आघ्रापयामि । (अगरबत्ती से गुरुकी आरती उतारें ।)

१२. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । दीपं समर्पयामि । (निरांजनसे गुरुकी आरती उतारें ।)

१३. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नैवेद्यार्थे पुरस्थापित नैवेद्यम निवेदयामि । ( तुलसीके पत्तेकों भिगोकर उससे नैवेद्यपर प्रोक्षण करें व बायां हाथ आँखोंपर रखकर नैवेद्य दिखाएं ।) इसके उपरांत आगेका मंत्र बोलें –

प्राणाय स्वाहा । अपानाय स्वाहा । व्यनाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा । ब्रहम्णे स्वाहा । ( वह फूल अथवा दूर्वा नारियलपर छोड़े ।)

महागणपतये नमः । नैवेद्यम समर्पयामि । मध्ये पानीयं समर्पयामि । उत्तरपोशनं समर्पयामि । हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि । मुखप्रक्षालनं समर्पयामि । करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि । मुखवासार्थे पूगीफलं तांबूलं समर्पयामि । ( समर्पयामि बोलते समय हथेली पर पानी लेकर छोड़ें ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । मंगलार्तिक्यदीपं समर्पयामि । ( मंगलारती दिखाएं व इस समय ‘ज्योतसे ज्योत जगाओ’ आरती बोलें, आरती के लिए पृष्ठ १६ देखें ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । कर्पुरदीपं समर्पयामि । ( कपूरसे आरती उतारें ।)

१४. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नमस्कारान् समर्पयामि । ( सद्गुरुको साष्टांग नमस्कार करें ।)

१५. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि । (दाईं ओर से घूमकर अपने चारो ओर प्रदक्षिणा करें ।)

१६. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । प्रार्थनां समर्पयामि । (हाथ जोड़कर प्रार्थना करें ।)

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ।

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।

यत्पूजितं मयादेव परिपूर्णं तदस्तु मे ।

कायेन वाचा मनसेंद्रियेर्वा । बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् । करोमि यद्द्यत सकलं परस्मै सद्गुरवे इतिसमर्पये तत् ।अनेन कृत पूजेन श्री सद्गुरुः प्रियतां ।

प्रीतों भवतु । तत्सद्ब्रह्मार्पणमस्तु । ( ऐसा बोलकर दाएं हाथ पर पानी लेकर छोड़े व दो बार आचमन कर आंखों को पानी लगाएं ।)

गुरुपूर्णिमा महोत्सवका कार्यक्रम पूर्ण होने के उपरांत अंत में आगे दिया श्लोक बोलें ।

यान्तु देवगणाः सर्वे पुजामदाय पार्थिवात् । इष्टकामप्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥

श्री गणपति पूजन करने के उपरांत नारियल पर अक्षत चढ़ाकर पूजाविधि को संपन्न करें ।

कृतज्ञता

प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजीके कृपाशीर्वादसे आजका यह कार्यक्रम संपन्न हुआ, इसलिए उनके चरणोंमें कृतज्ञता कर रुकेंगे ।

११. गुरुपूजन समाप्त होने पर सभी भक्तों को प्रसाद देंगे ।

हम प्रसाद बुँदिया, सेओ या पैकेट बनाकर उसमे किशमिश, बादाम, और मिश्री मिलाकर बना सकते हैं । ये प्रसाद हम उनलोगोंको भी दे सकते हैं जो किसी कारणवश गुरुपूर्णिमा महोत्सवमें नहीं आ पाये हैं।

१२. सद्गुरु की आरती :-

ज्योतसे ज्योत जगावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो।।

हे योगेश्वर हे ज्ञानेश्वर,

हे सर्वेश्वर हे परमेश्वर ।

निज कृपा बरसावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥१॥

हम बालक तेरे द्वार पे आयें – २

मंगल दरस दिखावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥२॥

शीश झुकाए करू तेरी आरती – २

प्रेमसुधा बरसावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥३॥

अंतरमें युग – युगसे सोयी – २

चितशक्तिको जगावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥४॥

साची ज्योत जगे हृदयमें – २

सोहम नाद जगावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥५॥

जीवन मुक्तानन्द अविनाशी -२

चरणन शरण लगावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो । .

मेरा अंतर तिमिर मिटावो । सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥६॥

सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ।

सद्गुरु ज्योतसे ज्योत जगावो ॥



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