हमारा रसोईघर एक आयुर्वेदिक तत्त्वज्ञानसे भरपूर शोधशाला है (भाग – २)
प्राचीनकालसे ही हमारे रसोईघरमें लोहेकी कढाईका उपयोग किया जाता रहा है | वर्तमान कालमें प्रचलित नॉन स्टिककी कढाईमें बनाए गए भोज्य पदार्थ जहां विषाक्त होकर अनेक रोगोंको जन्म देती हैं, वहीं लोहेके पात्रमें बनी तरकारी(सब्जी) पोषक तत्त्वसे युक्त हो जाती है ! विशेषकर हरी तरकारी जो लोहयुक्त होती है, उसे यदि लोहेकी कढाईमें बनाई जाए तो उसमें लौह तत्त्वकी वृद्धि होती है ! आपने देखा होगा की लोहेकी कढाईमें यदि बनी हुई तरकारी थोडी देर रह जाए तो वह काली हो जाती है, वस्तुत: ऐसी भोज्य पदार्थमें लौह तत्त्वकी वृद्धिके कारण होता है |
लोहेकी कढाईको धोकर पोछ दिया जाए और उसमें थोडासा तेल लगाकर दखकर रख दिया जाये तो वह एक नॉन स्टिकका कार्य करता है जिससे कोई हानि भी नहीं होती है और साथ ही कम तेलमें जो भी पकाना हो वह पक जाता है ! वैसे यदि उसमें जंग लगी हो तो उसे वस्त्रसे स्वच्छ कर ही भोजन बनाना चाहिए !
आजकल रक्ताल्पतताके (एनेमिया) रोग होना सामान्य बात हो गई है जो पूर्वकालमें नहीं हुआ करती थी; क्योंकि हम पारंपरिक पद्धतिसे अर्थात आयुर्वेदिक पद्धतिसे भोजन बनाते और खाते थे ! इसलिए कह रही हूं कि हमारा रसोईघर आयुर्वेदिक शोधशाला हुआ करता था जिसका सत्यानाश आधुनिक विज्ञानके उपकरणने कर दिया है |
इसलिए एल्युमीनियम व नॉन स्टिक बर्तन फेंककर अपने आयुर्वेदिक शोधशालामें पारम्परिक लोहे, पीतल एवं मिट्टीके पात्रमें भोजन पकाएं एवं स्वस्थ रहें !
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