साधको, गर्व करो अपने सौभाग्यपर
आओ गाएं गीत इस पूनम (गुरुपूर्णिमा)
इठलाएं अपने इस अहोभाग्यपर ।।१।।
बिन जोग-जतनके पाए जिन्हें ।
वे हैं साक्षात् जनार्दन ।
अवतरित हुए इस धरा-धामपर ।
करने दुर्जनोंका मर्दन ।।२।।
न साम्प्रदायिक टीका न गेरुआ चोला ।
न किया तप न गए वन ।
न ही करते वे स्थूल भजन
हां, लीला करते अवश्य ।
जैसे हो सामान्यजन ।।३।।
जन्मसे ही हैं ये सिद्ध तपस्वी
‘बाबा’ने (उनके गुरुने) ऐसे नहीं दिया ।
अठारह मासमें अपना सब ।।४।।
न करवाते अपनी पूजा
न करने देते ।
स्वयंका चरण स्पर्श ।
गुरुपूनमपर भी ।
करवाते गुरु तत्त्वकी पूजा ।
इनके समान क्या है कोई दूजा ?।।५।।
न देते गुरुमन्त्र तथापि ले जाते ।
अपने शरणागतको ।
अध्यात्मके शिखरपर ।
विनम्रताके ये प्रतिरूपका है ।
अधिकार चराचरपर ।।६।।
यशोदा समान निर्मल ममता ।
महर्षि व्यास समान समता ।
कृष्ण समान पितृत्व ।
जिनका है व्यक्तित्व ।। ७।।
गिरते हैं जिनके तनसे । झर-झर स्वर्ण-चैतन्य कण ।
ब्रह्माण्डमें क्या हुए कभी ।
ऐसे कोई सन्तगण ।।८।।
दैवी कार्यसे प्रसन्न हो ।
निर्गुण ब्रम्हाररुपी ॐ।
हुआ प्रस्फुटित जिनका देह ।
ऐसी अलौकिकताको सहजतासे ।
धारण कर रहते ये विदेह ।।९।।
अब भी क्या इनकी अद्वितीयतापर ।
हो सकता है किसीको सन्देह ।।
रामनाथीमें फल-फूल-पौधे-वृक्ष ।
शुक-तितलियां-अबोल बालक ।
सब भिन्न-भिन्न रीतिसे ।
करते इनका स्तवन ।।१०।।
कहते सिद्ध, तपस्वी व महर्षि ।
परमेश्वरका हुआ है अवतरण ।
ऐसे श्रीगुरुकी अद्वितीयताका ।
करे यह तुच्छ कैसे कथन ।।११।। (११.६.२०१८)
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