क्यों हैं हमारे श्रीगुरु ‘श्रीकृष्ण स्वरुप’ ? (भाग – १)


भगवान श्रीकृष्णके १०८ नामोंमेंसे एक नाम धर्माध्यक्ष है | उन्होंने इस नामको चरितार्थ कर दिखाया है | जैसे –
* हमारे भिन्न धर्मशास्त्रोंमें उपलब्ध धर्मकी भिन्न व्याख्यायोंको संकलित कर, उसके माध्यमसे धर्मका महत्त्व, समाजको उन्होंने बताया है |
* धर्मकी इन परिभाषाओंको उन्होंने समाजमें चरितार्थ कर अनेक साधक-जीवोंका उद्धार कर अर्थात उन्हें जीवन्मुक्त कर, संतपदपर आसीन कर, समाज धर्मपालन क्यों करे, इसका महत्त्व साधक जीव एवं सर्वसामान्य व्यक्तिके मनपर अंकित किया है |
* इस घोर कलियुगमें समाजमें धर्मकी पुनर्स्थापनाका कार्य उन्होंने आरम्भ किया है |
* धर्मकी व्यापक परिभाषासे प्रभावित होकर अनेक अहिंदू स्वयं ही हिन्दू धर्मका पालन कर अपना और समाजका उद्धार करने हेतु कृतिशील हो रहे हैं |
* अध्यक्ष वह होता है जो समाजका संगठन कर उसे दिशा दे सके | आज भारत और विदेशोंमें हिन्दू संगठनके कार्यका बीडा उठाकर उन्हें योग्य दिशा देकर, हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना हेतु कृतीशील कर रहे हैं |
* धर्म अध्यक्ष समान वे धर्मको आजकी वैज्ञानिक परिभाषामें समाजको बताकर, अनेक आस्तिकोंके साथ ही निधर्मी बुद्धिजीवियों एवं नास्तिकोंको भी धर्मकी ओर प्रवृत्त कर रहे हैं |
* धर्म अध्यक्ष समान इस निधर्मी राष्ट्रीय प्रणालीमें धर्मसापेक्ष राष्ट्रीय प्रणालीकी स्थापना हेतु द्रष्टा बन पिछले २६ वर्षोंसे सातत्यसे कार्य कर हिन्दू राष्ट्रप्रेमियोंका निर्माण कर रहे हैं |
* सारे धर्मग्रंथोंके सारको अपने ग्रंथोंमें संकलित कर धर्मका वृहद स्वरुप समाजके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं और अब अनेक संत भी उनके ग्रंथोंका वेद-तुल्य मानने लगे हैं | वेद-तुल्य ग्रंथोंका निर्माण मात्र धर्माध्यक्ष ही कर सकते हैं |
* धर्मद्रोहियोंका वैचारिक विरोध कर उनके अनर्गल एवं समाजको दिशाभ्रमित करनेवाले तथ्योंका खंडन कर शास्त्रोंका मंडन कर सभीको योग्य दिशा दे रहे हैं | (क्रमश:) (१२.५.२०१८)



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