हिन्दू धर्मके आधार ग्रन्थ (भाग-४)


आरण्यक और उपनिषद् :
ब्राह्मण-ग्रन्थोंके जो भाग वनमें पढने योग्य हैं, उनका नाम आरण्यक है । इस समय प्राप्त उपनिषद् लगभग २७५ हैं । ‘कल्याण’के ‘उपनिषद्-अङ्क’में उनकी सूची दी गई है । तेरह उपनिषद मुख्य माने जाते हैं, जिनपर आचार्योंने भाष्य लिखे हैं । उनके नाम ये हैं :
१. ईश २. केन ३. कठ ४. मुण्डक ५. माण्डूक्य ६. प्रश्न ७. ऐतरेय ८. तैत्तिरीय ९. छान्दोग्य १०. बृहदारण्यक ११. श्वेताश्वतर १२. कौषीतिकी और १३. नृसिंहतापिनी । इनमेंसे ईशावास्योपनिषद् यजुर्वेदकी मूल संहितामें ही है ।
श्रौतसूत्र :
   वेदोंमें सूत्र-भाग तीन प्रकारके हैं : १. श्रौतसूत्र २. गृह्यसूत्र ३. धर्मसूत्र । श्रौतसूत्रोंमें मन्त्र-संहिताके कर्मकाण्डको स्पष्ट किया गया है । इस समय निम्नलिखित श्रौतसूत्र उपलब्ध हैं :
ऋग्वेदके : १. आश्वलायन और २. शाङ्खायन श्रौतसूत्र
कृष्णयजुर्वेदके : १. आपस्तम्ब-श्रौतसूत्र २. हिरण्यकेशीय (सत्याषाढ)-श्रौतसूत्र ३. बौधायन-श्रौतसूत्र ४. भारद्वाज ५. वैखानस ६. वाधूल ७. मानव ८. वाराह-श्रौतसूत्र तथा शुक्लयजुर्वेदका : १. कात्यायन (या पारस्कर) श्रौतसूत्र ।
सामवेदके : मशकसूत्र, लाट्यायनसूत्र, द्राह्यायणसूत्र और खादिर आदि श्रौतसूत्र ।
अथर्ववेदका : वैतान श्रौतसूत्र मिलता है ।
गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र 
जैसे श्रौतसूत्र चारों वेदोंके हैं, वैसे ही गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र चारों वेदोंके होते हैं ।
   धर्मसूत्रोंमें धर्माचारका वर्णन होता है । गृह्यसूत्रोंमें कुलाचारका वर्णन रहता है ।
ऋग्वेदके : १. आश्वलायन-गृह्यसूत्र तथा २. शांखायन-गृह्यसूत्र हैं । इसका वसिष्ठ-धर्मसूत्र भी है, जिसपर संस्कृतमें कई टीकाएं हैं ।
कृष्णयजुर्वेदके :
१. मानव-गृह्यसूत्र २. काठक-गृह्यसूत्र ३. आपस्तम्ब-गृह्यसूत्र ४. बौधायन-गृह्यसूत्र ५. वैखानस-गृह्यसूत्र और ६. हिरण्यकेशीय-गृह्यसूत्र तथा इन्हीं नामोंके धर्मसूत्र भी प्राप्त हैं ।
शुक्लयजुर्वेदका : पारस्कर-गृह्यसूत्र (इसपर कर्क, जयराम, गदाधर आदि सात संस्कृत टीकाएं प्राप्त हैं) तथा कात्यायन एवं विष्णु-धर्मसूत्र प्राप्त हैं ।
सामवेदके : १ – जैमिनीय-गृह्यसूत्र २. गोभिल-गृह्यसूत्र ३. खादिर-गृह्यसूत्र ४. द्राह्यायण-गृह्यसूत्र तथा ५. गौतम धर्मसूत्र (इसपर मस्करिभाष्य तथा मिताक्षरावृत्ति प्राप्त हैं) तथा छान्दोगपरिशिष्ट मिलते हैं ।
अथर्ववेदके : कौशिक, वाराह एवं वैखानस-गृह्यसूत्र मिलते हैं; परन्तु धर्मसूत्र प्राप्त नहीं है ।
प्रातिशाख्य :
 प्रातिशाख्य एक प्रकारके वैदिक व्याकरण हैं । ये चारों ही वेदोंके उपलब्ध हैं । कात्यायन-शुल्बसूत्र यजुर्वेदके शुल्बसूत्रोंमें प्रधान है । इसमें ज्यामिति-शास्त्रका विस्तार है । भौतिक विज्ञानका वर्णन करनेवाले इन शुल्बसूत्रोंके लोपसे वैदिक भौतिक विज्ञान लुप्त हो गया ।
अनुक्रमणी :
   वेदोंकी रक्षा तथा वेदार्थका विवेचन इन ग्रन्थोंका प्रयोजन है ।
ऋग्वेदकी :
१. आर्षानुक्रमणी : इसमें मन्त्रक्रमसे ऋषियोंके नाम हैं
२. छन्दोऽनुक्रमणी ३. देवतानुक्रमणी ४. अनुवाकानुक्रमणी ५. सर्वानुक्रमणी ६. बृहदैवत ७. ऋग्विज्ञान ८. बहृच्परिशिष्ट ९. शाङ्खायन-परिशिष्ट १०. आश्वलायन-परिशिष्ट तथा ११. ऋक् प्रातिशाख्य प्राप्त हैं । कृष्णयजुर्वेदके : १. आत्रेयानुक्रमणी २. चारायणीयानु क्रमणी और तैत्तिरीय-प्रातिशाख्य प्राप्त हैं ।
शक्लयजुर्वेदके :
 १. प्रातिशाख्य-सूत्र २. कात्यायनानु-क्रमणी ।


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