हिन्दू धर्मके आधार ग्रन्थ (भाग-५)


वेदाङ्ग :
वेदके छह अङ्ग माने जाते हैं । इन अङ्गोंके बिना वैदिक ज्ञान अपूर्ण रहता है ।
१. वेदके नेत्र हैं ज्योतिष २. कर्ण हैं निरुक्त ३. नासिका है शिक्षा ४. मुख है व्याकरण ५. हाथ हैं कल्प और ६. पांव हैं छन्द ।
शिक्षा :
शिक्षामें मन्त्रके स्वर, अक्षर, मात्रा तथा उच्चारणका विवेचन होता है । इस समय प्रायः निम्नलिखित शिक्षाग्रन्थ उपलब्ध हैं :
ऋग्वेदकी : पाणिनीय शिक्षा ।
कृष्णयजुर्वेदकी : व्यासशिक्षा ।
शुक्लयजुर्वेदके : याज्ञवल्क्य आदि २५ शिक्षाग्रन्थ हैं ।
सामवेदकी : गौतमी, लोमशी और नारदीय शिक्षा ।
अथर्ववेदकी : माण्डूकी शिक्षा ।
व्याकरण
व्याकरणका कार्य भाषाका नियम स्थिर करना है । शाकटायन व्याकरणके सूत्र तथा आजका पाणिनीय व्याकरण यजुर्वेदसे सम्बद्ध प्रतीत होते हैं । पहलेके भी बहुतसे व्याकरण ग्रन्थ थे, जिनके सूत्र पाणिनीयमें हैं । पाणिनि-व्याकरणपर कात्यायन ऋषिका वार्तिक और महर्षि पतञ्जलिका महाभाष्य है । इसके पश्चात इसपर व्याख्या, टीका तथा विवेचनात्मक ग्रन्थोंकी तो बहुत बडी संख्या है ।
     इनके अतिरिक्त सारस्वत-व्याकरण, कामधेनु-व्याकरण, हेमचन्द्र-व्याकरण, प्राकृत-प्रकाश, प्राकृत-व्याकरण, कलापव्याकरण, मुग्धबोध व्याकरण आदि बहुतसे व्याकरण शास्त्रके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं । इन सबपर भी भाष्य, टीका और विवेचन हैं ।
निरुक्त :
      जैसे पाणिनीय व्याकरणके प्रचारसे अन्य प्राचीन व्याकरण लुप्त हो गए, वैसे ही निरुक्त-ग्रन्थ भी लुप्त हो गए । निरुक्त, वेदोंकी व्याख्या-पद्धति बताते हैं । इन्हें वेदोंका विश्वकोष कहना चाहिए । अब केवल यास्काचार्यका निरुक्त मिलता है । इसपर बहुतसे भाष्य, टीकादि ग्रन्थ हैं । इसी प्रकार कश्यप, शाकपूणि आदिके निरुक्त ग्रन्थोंका पता चलता है ।
छन्द :
     इस समय वैदिक छन्दोंके निर्देशक मुख्यतः इतने ग्रन्थ उपलब्ध हैं :
गार्ग्यप्रोक्त उपनिदानसूत्र (सामवेदीय), पिङ्गलनागप्रोक्त छन्दःसूत्र (छन्दोविचिति), वेङ्कट माधवकृत छन्दोऽनुक्रमणी और जयदेवका छन्दःसूत्र । लौकिक छन्दोंपर भी छन्दःशास्त्र (हलायुधवृत्ति), छन्दोमञ्जरी, वृत्तरत्नाकर, श्रुतबोध, जानाश्रयी छन्दोविचिति आदि अनेक ग्रन्थ हैं ।
कल्प और ज्योतिष :
कल्पसूत्रोंमें यज्ञोंकी विधिका वर्णन है । ज्योतिषका मुख्य प्रयोजन संस्कार तथा यज्ञोंके लिये मुहूर्त बताना और यज्ञस्थली, मण्डपादिका माप बताना है । व्याकरणके समान ज्योतिषशास्त्र भी व्यापक है । इस समय लगधाचार्यके वेदाङ्ग-ज्योतिषके अतिरिक्त सामान्य ज्योतिषके बहुतसे ग्रन्थ हैं । नारद, पराशर, वसिष्ठ आदि ऋषियोंके बडे-बडे ग्रन्थोंके अतिरिक्त वराहमिहिर, आर्यभट्ट, ब्राह्मगुप्त और भास्कराचार्यके ज्योतिषके ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हैं ।
उपवेद :
     प्रत्येक वेदका एक उपवेद होता है । ऋग्वेदका अर्थवेद, यजुर्वेदका धनुर्वेद, सामवेदका गान्धर्ववेद और अथर्ववेदका उपवेद आयुर्वेद है ।


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