हिन्दू धर्मके आधार ग्रन्थ (भाग – १)
वर्तमान कालमें अनेक लोगोंको हिन्दू धर्मके मुख्य ग्रन्थोंके विषयमें जानकारी नहीं है। सत्य तो यह है कि हमारे धर्मग्रन्थोंकी विशाल थातीको मलेच्छ आक्रमणकारियोंद्वारा हिन्दू धर्मके प्रति द्वेषके कारण नष्ट कर दिया गया; कुछ ग्रन्थ तो लोगोंकी असावधानीके कारण नष्ट हो गए और कुछ कीडोंके कारण; किन्तु जो बचे हुए हैं, उन्हें भी लोग पढते नहीं, मात्र अपने घरमें सजाकर रख देते हैं; इसलिए हम यह लेखमाला आरम्भ कर रहे हैं, जिससे सभीको यह सामान्य ज्ञान संक्षिप्त रूपमें मिले ।
हिन्दू धर्मके आधार ग्रन्थोंके मुख्य भाग ये हैं :
१. वेद २. वेदाङ्ग ३. उपवेद ४. इतिहास और पुराण ५. स्मृति ६. दर्शन ७. निबन्ध ८. आगम
वेद
वेदके छह भाग हैं :
१. मन्त्रसंहिता, २. ब्राह्मणग्रन्थ, ३. आरण्यक, ४. सूत्रग्रन्थ ५. प्रातिशाख्य और ६. अनुक्रमणी ।
वेद चार हैं : १. ऋग्वेद २. यजुर्वेद ३. सामवेद और ४. अथर्ववेद; किन्तु ये चार वेदके विभाजन हैं । मूलतः वेद एक ही है । वेदोंका यह विभाजन करनेके कारण ही महर्षि कृष्णद्वैपायन ‘वेदव्यास’ कहे जाते हैं ।
यज्ञोंमें चार मुख्य ऋत्विज् होते हैं : होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा । ऋग्वेदके ऋत्विज् ‘होता’ कहलाते हैं, यजुर्वेदवालेको अध्वर्यु, सामवेदवालेको उद्गाता तथा अथर्ववेदके ऋत्विज् ‘ब्रह्मा’ कहलाते हैं । ये क्रमसे चारों दिशाओंमें बैठते हैं ।
त्रयो भी वेदोंका एक नाम है : वेदत्रयीका यह अर्थ है कि पहले प्रधान वेद तीन ही रहे ।
स्त्रियामृक्सामयजुषी इति वेदास्त्रयस्त्रयी । ( अमरकोष १।६ । ३ )
वेद अनादि हैं । उनका कोई निर्माता नहीं है । वे शाश्वत ईश्वरीय ज्ञान हैं । सृष्टिके प्रारम्भमें ब्रह्माके हृदयमें उन्हें भगवानने प्रकट किया । एक-दूसरेसे सुनकर ही वैदिक मन्त्रोंका ज्ञान होता है; इसलिए वेदमन्त्रोंको श्रुति कहते हैं ।
मन्त्रोंके छन्द, ऋषि, देवता तथा विनियोग निदिष्ट हैं ।
छन्दके द्वारा जाना जाता है कि उस मन्त्रका कैसे उच्चारण करना चाहिए ? उनकी पूरी व्याख्या निरुक्त या व्याकरणसे नहीं होती । समाधिमें जिसने जिस मन्त्रका अर्थ-दर्शन किया, उसे उस मन्त्रका ऋषि कहा जाता है । ऋषि मन्त्रद्रष्टा होते हैं ।
वेदके प्रत्येक मन्त्रकी आनुपूर्वी नित्य है । मन्त्रोंके शब्दोंमें उलट-पलट सम्भव नहीं । मन्त्रोंका संकलन-क्रम परिवर्तित हो सकता है; इसलिए वेदपाठकी अनेक प्रणालियां हैं । इन्हें क्रम, घन, जटा, शिखा, रेखा, माला, ध्वज, दण्ड और रथ कहते हैं ।
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