हिन्दू धर्मके आधार ग्रन्थ (भाग-२)


वेदकी शाखाएं : ऋषियोंने अपने शिष्योंको अपनी सुविधानुसार मन्त्रोंको पढाया । किसीने एक छन्दके सब मन्त्र एक साथ पढाए । दूसरेने एक देवताके सब मन्त्र साथ पढाए । तीसरेने मन्त्रोंको उनके विषय अथवा उपयोगके अनुसार रखा । इस प्रकार सम्पादन-क्रमसे एक वेदकी अनेक शाखाएं हो गईं ।
ऋग्वेदकी २१ शाखाएं कही जाती हैं । उनमेंसे शाकलशाखा शुद्धरूपमें प्राप्त है । यजुर्वेदके दो प्रकारके पाठ हैं । एकको शुक्लयजुर्वेद तथा दूसरेको कृष्णयजुर्वेद कहते हैं । शुक्ल यजुर्वेदकी १५ तथा कृष्णयजुर्वेदकी ८६ शाखाएं थीं । इनमेंसे शुक्लयजुर्वेदकी काण्व तथा माध्यन्दिनी शाखाएं प्राप्त हैं । कृष्णयजुर्वेदकी तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ, कापिष्ठल और श्वेताश्वतर; ये पांच शाखाएं मिलती हैं । सामवेदकी एक सहस्र शाखाओंका उल्लेख है; परन्तु उनमें केवल तीन प्राप्त हैं : १. कौथुमी, २. जैमिनीया और ३. राणायनीया । उनमें भी कौथुमी शाखा तथा जैमिनीया ही पूर्णरूपमें मिलती हैं । राणायनीयाका भी कुछ अंश प्राप्त है । अथर्ववेदकी तो शाखाओंमेंसे अब पैप्पलादी तथा शौनकीया शाखाएं शुद्धरूपमें मिलती हैं ।
ब्राह्मण-ग्रन्थ
   वेदमन्त्रोंका यज्ञमें कैसे उपयोग हो ?, यह इनमें बताया गया है । इस समय जो ब्राह्मण-ग्रन्थ मिलते हैं, उनका विवरण इस प्रकार है :
  ऋग्वेदके ‘ऐतरेय-ब्राह्मण’ और ‘शाङ्खायन-ब्राह्मण’ (अथवा कौषीतकि-ब्राह्मण) आदि ग्रन्थ उपलब्ध हैं ।
धनुर्वेदमें अस्त्र-शस्त्रोंके निर्माण तथा प्रयोगका वर्णन है । प्रयोग करके सीखनेका यह शास्त्र है । प्रयोगकी परम्परा बन्द हो जानेसे इसका लोप हो गया ।
गान्धर्ववेद :
   इसमें नृत्य तथा गायनका विषय है । राग-रागिनी, ताल-स्वर, वाद्य तथा नृत्यके भेदोपभेदोंका वर्णन इसका तात्पर्य है । गानविद्या प्राचीन कालसे चली आ रही है और उसके पुराने ‘घराने’ अब भी हैं; तथापि सामगानकी अरण्यगान तथा गेयगान; इन दोनों प्रणालियोंका लोप हो गया है । प्राचीन गायन-शास्त्रके इस समय भी बहुतसे ग्रन्थ उपलब्ध हैं, जिनमें मुख्य ये हैं : भरतमुनिका भरतनाट्यशास्त्र (इसपर अभिनवगुप्तकी टीका हैं), दत्तिलमुनिका दत्तिलम् , शाङ्गदेवका संगीतरत्नाकर (इसपर मल्लिनाथ आदिकी टीकाएं हैं) और दामोदरकृत संगीतदर्पण आदि ।
आयुर्वेद :
   शरीर-रचना, रोगके कारण, लक्षण, औषधि, गुण, विधान तथा चिकित्साका वर्णन यह शास्त्र करता है । आयुर्वेदके ग्रन्थोंमें अश्विनीकुमारसंहिता, ब्रह्मसंहिता, भेलसंहिता एवं आग्नीध्रसूत्रराज बहुत प्राचीन ग्रन्थ हैं । सुश्रुतसंहिता, धातुवाद, धन्वन्तरिसूत्र, मानसूत्र, सूपशास्त्र, सौभरिसूत्र, दाल्भ्यसूत्र, जाबालिसूत्र, इन्द्रसूत्र, शब्दकुतूहल तथा देवलसूत्र भी प्राचीन ग्रन्थ हैं । चरकसंहिता और अष्टाङ्गहृदय आदि भी प्राचीन ग्रन्थ ही हैं ।
आयुर्वेदके सहस्रों ग्रन्थ हैं । उनमें मनुष्योंके अतिरिक्त अश्व, गौ, गज तथा अन्य पशु-पक्षियोंकी चिकित्साके उपायोंका भी वर्णन मिलता है ।


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