रामराज्यकी स्थापना लेखन और प्रवचनसे कैसे संभव है ?


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किसी पत्रकारने कल मुझे पूछा कि राम राज्य रुपी हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना हेतु आप प्रवचन एवं लेखनसे योगदान दे रही हैं तो मेरा प्रश्न है कि इनके माध्यमसे यह कैसे संभव है  ?
उत्तर : खरे अर्थमें रामराज्यका अर्थ है अपने विषय-वासनाओंपर नियंत्रण कर ईश्वरीय तत्त्वमें रममाण होना ! जब प्रत्येक व्यक्तिके अंदर इस प्रकारके रामराज्य हेतु प्रयास आरंभ हो जाएंगे तो पहले व्यक्तिके भीतर, उसके पश्चात उसके परिवारमें, तत्पश्चात उसके ग्राम या मोहल्लेमें, एवं क्रममें जनपद, राज्य और राष्ट्रके भीतर रामराज्य आनेमें समय नहीं लगेगा; अतः हमें रमराज्य हेतु दो छोरसे प्रयास करने होंगे एक व्यष्टि स्तरपर और दूसरा समष्टि स्तरपर । व्यष्टि स्तर अर्थात् वैयक्तिक स्तरपर रामराज्य हेतु अखण्ड नामजपके प्रयास करना अपने दोष और अहंके लक्षण दूर करने हेतु सतर्कतासे प्रयास करना और समष्टि स्तरपर धर्मग्लानि रोकना, धर्माधिष्टित राष्ट्र प्रणाली स्थापित करना, देवी -देवता, संत -गुरु , गौ, गंगाकी अवमानना रोकना , राष्ट्रद्रोहियों एवं धर्मद्रोहियोंका वैधानिक मार्गसे विरोध कर उन्हें कठोर दंड दिलवाना , ये सब प्रयास करना होगा आवश्यक होगा ! और जैसे-जैसे लेखों और प्रवचनोंके माध्यमसे लोगोंमें जन-जागृति होगी वैसे-वैसे यह समाज रामराज्यकी ओर मार्गक्रमण करने लगेगा ! इस दिशामें ईश्वरीय नियोजन अनुरूप हमारी जैसी अनेक संस्थायेंमें प्रयासरत है और कालानुसार यह सब होनेके कारण तथा उच्च कोटिके संतोंके संकल्पके कारण उसके परिणाम मात्र कुछ वर्षोंके भीतर दिखाई देनेवाला है !-तनुजा ठाकुर



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