एक व्यक्तिने कहा है कि आप धर्मधारा सत्संगके स्थानपर ‘हिन्दू वार्ता’ भेजती हैं तो इससे मुझे अत्यधिक निराशा होती है; क्योंकि मुझे उस दिवस आपका सत्संग सुननेको नहीं मिलता है ।
आप और आपकी आनेवाली पीढियां भविष्यमें भी सत्संग सुन सकें, इस हेतु हिन्दू वार्ता भेजती हूं । मनुष्य बलके अभावमें हिन्दू वार्ता मैं प्रतिदिन नहीं भेज पाती हूं, अन्यथा स्थिति तो इतनी विकट है कि दिनमें तीन समय हिन्दू वार्ता प्रसारित किया जाना चाहिए ! राष्ट्र और धर्मपर हो रहे आघातके विषयमें स्वयं जागृत हों एवं अन्योंको भी जागृत कर प्रत्यक्ष कृति करेंगे तो ही राष्ट्र और धर्म सुरक्षित रहेगा और तो ही आप भविष्यमें भी सत्संग सुन पायेंगे । जिसप्रकार रोग होनेपर कडवी औषधियोंका सेवन न चाह कर भी करना पडता है वैसे ही यदि इच्छा न हो तो भी उसे सुनें और लोगोंको सुनाएं, मरणासन्न राष्ट्रको पुनर्जीवन देने हेतु यह आवश्यक है ।
वैसे ही एक और व्यक्तिने लिखा है कि मैं आपका धर्मधारा सत्संग अपने मित्रोंको नियमित भेजता हूं, किन्तु हिन्दू वार्ता भेजते समय लगा कि कहीं मेरे मित्र यह सुनकर हंसेंगे तो नहीं ! जो आज इसे सुनकर हंसेंगे, वे कल आपात स्थिति आनेपर निश्चित ही रोएंगे; अतः अगला व्यक्ति क्या सोचेगा यह सोचनेकी अपेक्षा यह मेरा धर्म है यह सोचकर उसका प्रसार करें ! वैश्विक पटलपर हो रहे घटनाक्रम आगामी विनाशकालके स्पष्ट संकेत दे रहे हैं; अतः कालानुसार योग्य कृति करें !
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