विदेश में रह रहे कुछ हिंदुओं ने विदेश में रहने के लाभ बताए | उसमें से एक लाभ आपके समक्ष रखती हूँ उन्होने कहा यहाँ पर फल अत्यधिक ताजे मिलते हैं ! मैं भी पास ही के एक mall में उसी दिन गयी थी वहाँ के फल देखें, बाहर से सब देखने में अत्यधिक आकर्षक लग रहे थे | सूक्ष्म परिक्षण किया तो सारे फलों के ऊपर काले रंग का सूक्ष्म अनिष्ट आवरण था उसके कारण इस प्रकार हैं |
१. विदेशी फल सदैव मीठे , बड़े और बिना कीड़ा लगे हुए होते हैं और सर्व काल उपलब्ध मिलते हैं | विदेशी सभी फल हाइब्रिड (वर्णसंकर ) कर उगाये जाते हैं अतः उसकी नैसर्गिक सात्त्विकता नष्ट हो चुकी होती है | फल की नैसर्गिक गुण है कि वह मौसमी होते हैं और आरंभ में खट्टे, थोड़े समय पश्चात मीठे और अंत में उनमें कीड़े लगने लगते हैं, परंतु विदेशी फल में ये सब नैसर्गिक बातें दिखाई नहीं देती है अतः वे सात्विक नहीं होते |
२. माल्स में कहीं गौ मांस रखा होता है कहीं सुअर का मांस और सभी लोग उसी हाथ से सब कुछ छूते हैं फलस्वरूप फलों पर मांस के सूक्ष्म संक्रमण काले आवरण के रूप में स्पष्ट दिखता है तभी तो हमारे पूर्वज कहते थे कि सात समुन्द्र पार मलेच्छ बसते हैं और वहाँ जाने से हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाता है , मेरे जैसे कितने व्यक्ति सूक्ष्म परिक्षण कर उसका उपाय ढूंढ कर उन आवरण को नष्ट कर भोजन ग्रहण करते होंगे जरा सोचें ! अतः विदेशों में ऐसा कुछ भी नहीं जिस पर हम गर्व कर सकें , अच्छी सड़कें और थोड़ी सी सुव्यवस्था है उसके लिए यदि हम सब भारत में मिलकर प्रयास करेंगे तो वह कुछ ही वर्ष में वह साध्य हो जाएगा और २०२५ से आरंभ होनेवाले सुराज्य में हम विदेशों से भी अच्छी सुव्यवस्था पूरे विश्व को भारत में अमल कर दिखाएंगे !
हिन्दू धर्म मात्र एक ऐसा धर्म है जो सत्त्व, रज और तम के सिद्धान्त को मानता है, हमारी संस्कृति ने निसर्ग के साथ कभी खिलवाड़ नहीं किया , पाश्चात्य देशों ने प्रकृति पदत्त सभी खाद्य पदार्थ तक से अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु genetical इंजीन्यरिंग के नाम पर खिलवाड़ किया है और कर भी रहे हैं फलस्वरूप उस रज और तम प्राधान भोजन को खाने पर कर्करोग (कैंसर) जैसे रोग वहाँ अति सामान्य रोग है ! और भारतीय को भी धर्म का ज्ञान नहीं होने के कारण वे विदेशी तमोगुणी संस्कृति और संस्कार दोनों के ही प्रति आकृष्ट हो जाते हैं और उसकी भूरी भूरी प्रशंसा करते हैं और मॉल रूपी महामारी आज भारत के बड़े शहरों में भी फैल रहा है यह दुख की बात है !-तनुजा ठाकुर
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