बाबा रामदेवने ‘आईएमए’को बताया राजनीतिक संस्था, कहा कि इसके कई चिकित्सक असभ्य, जो आयुर्वेदका सम्मान नहीं करते
३१ मई, २०२१
‘कोरोना’ सङ्कटके मध्य पिछले कुछ दिनोंसे बाबा रामदेव और ‘आईएमए’के मध्य विवाद छिडा हुआ है । ‘न्यूज18 इंडिया’के साथ रविवार, ३० मईको विशेष साक्षात्कारमें बाबा
रामदेवने इस प्रकरणपर अपना पक्ष रखा । रामदेवने कहा, “मैं अपने वक्तव्यपर खेद व्यक्त कर चुका हूं और मैंने ‘एलोपैथी’पर दिया वक्तव्य ‘वापस’ भी ले लिया है । मैं सभी स्वास्थ्यकर्मियोंका सम्मान करता हूं । उन्होंने कहा कि ‘एलोपैथी’से घृणाका कोई प्रश्न नहीं है । मेरे मनमें किसीके लिए दुराग्रह नहीं है और मैं मानता हूं कि ‘एलोपैथी’ने करोडों व्यक्तियोंके जीवनकी रक्षा की है; परन्तु ‘एलोपैथी’में कई रोगोंकी औषधि नहीं है । उन्होंने ‘आईएमए’पर प्रत्याक्रमण करते हुए कहा कि ९० प्रतिशत लोग योग और प्राणायामसे ठीक हुए हैं; परन्तु सदैव ही एलोपैथीके समक्ष आयुर्वेदको नीचा दिखाया जाता है । योग गुरुने कहा, “इस संस्थाने मुझपर मानहानिका परिवाद किया है; परन्तु परिवाद तो मुझे करना चाहिए; क्योंकि ‘आईएमए’के चिकित्सक असभ्यतासे बात करते हैं ।” उन्होंने कहा कि मैं ९० प्रतिशत चिकित्सकोंका सम्मान करता हूं; परन्तु कुछ चिकित्सकोंने लूट मचा रखी है । ‘कोरोना’ महामारीकी चिकित्सामें लोगोंको दी जा रही औषधियोंपर प्रश्न उठाते हुए बाबा रामदेवने कहा, “क्या किसी भी ‘कोरोना’की औषधिका परीक्षण हुआ है ? मैं ऐसा इसलिए पूछ रहा हूं; क्योंकि आयुर्वेदिक औषधि ‘कोरोनिल’का वैज्ञानिक परिक्षण हुआ है ।”
बाबा रामदेव और ‘आईएमए’के विवादसे ज्ञात हुआ है कि यह शासकीय उपक्रम नहीं हैं, यह एक ईसाई संस्था है, जिसका नियन्त्रण बडे-बडे औषधि निर्माताओंके हाथोंमें है, जिनका शुद्ध लाभ लागत मूल्यसे कई सहस्र गुणा है । केवल आयुर्वेद ही इनका एकमात्र प्रतिद्वन्दी है, इस कारण विश्वका ‘माफिया’ (राजनीतिक व आर्थिक प्रकरणों), जो इन सबको संचालित कर रहा है, उसे आयुर्वेद अपने मार्गमें सबसे बडा शूल दिखाई देता है । हमे अपनी गौरवशाली संस्कृति एवं धर्मका रक्षण करना है, तो हमे अपने वेदों एवं शास्त्रोंका ज्ञान व रक्षण करना होगा और यह तभी सम्भव है, जब भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा । – सम्पादक, वैदिक उपाासना पीठ
स्रोत : ऑप इंडिया
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