न्यायमूर्ति एस.आर. सेनका प्रखर वक्तव्य, भारतको हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, परन्तु यह धर्मनिरपेक्ष रहा !!


दिसम्बर १२, २०१८

मेघालय उच्च न्यायालयने अपने एक निर्णयमें हिन्दुस्तानके इतिहास और विभाजन तथा उस समय सिखों, हिन्दुओं आदिपर हुए अत्याचारोंका सन्दर्भ देते हुए कहा है कि पाकिस्तानने स्वयंको इस्लामिक देश घोषित किया, जबकि भारतका विभाजन धर्मके आधारपर हुआ था, उसे भी हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, किन्तु वह धर्मनिरपेक्ष बना रहा । न्यायालयने यह भी कहा है कि किसीको भी भारतको दूसरा इस्लामिक राष्ट्र बनानेका प्रयास नहीं करनी चाहिए, अन्यथा वह दिन भारत और विश्वके लिए प्रलयकारी होगा ।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीपर विश्वास प्रकट करते हुए न्यायालयने कहा है कि उन्हें विश्वास है कि यह शासन प्रकरणकी गम्भीरताको समझेगा और आवश्यक पग उठाएगा और पश्चिम बंगालकी मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी राष्ट्रहितको ध्यानमें रखते हुए पूरा सहयोग देंगी । न्यायालयने केन्द्र शासनसे अनुरोध किया है कि वह विधान बनाए जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तानसे आने वाले हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जैंता और गारो समुदायको बिना किसी प्रश्न और लिखित-पत्रके भारतकी नागरिकता दी जाए ।

बांग्लादेशसे आए बंगाली हिन्दुओं और पाकिस्तान विभाजनके समय सिख और हिन्दुओंके साथ अत्याचारोंकी पीडाको साझा करते हुए यह निर्णय न्यायमूर्ति एसआर सेनने अमोन राणाकी स्थानीय निवास प्रमाणपत्रसे सम्बन्धित याचिकाका निपटारा करते हुए गत सोमवारको दिया ।

निर्णयमें भारतकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताते हुए कहा गया है कि यह हिन्दू राजका देश था । बादमें मुगल आए और अंग्रेज आए । १९४७ में भारत स्वतन्त्र हुआ । भारत दो राष्ट्रमें विभाजित हो गया । पाकिस्तानने स्वयंको इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया और भारत जिसका विभाजन धर्मके आधारपर हुआ था, उसे भी हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था, किन्तु वह धर्मनिरपेक्ष देश रहा ।

आज भी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तानमें हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जैंता और गारोपर अत्याचार होता है, उनके पास कोई स्थान नहीं है जहां वे चले जाएं । बंगाली हिन्दू इस देशके निवासी हैं । उनके अधिकारोंको नकार कर हम उनके साथ अन्याय कर रहे हैं । निर्णयमें असम एनआरसी प्रक्रियाको दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि उसमें बहुतसे विदेशी भारतीय बन गए हैं और मूल भारतीय छूट गए हैं, जो कि दुखद है ।

विधान (कानून) लोगोंके लिए होता है न कि लोग विधानके लिए । न्यायालयने प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री, वैधानिक मन्त्री और सांसदोंसे ऐसा विधान बनानेका अनुरोध किया है, जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेशसे आने वाले हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसीई, खासी जैंता और गारोको सम्मानसे शान्ति पूर्वक भारतमें रहनेकी आज्ञा हो ।

न्यायालयने शासनसे कहा है कि वह सभी नागरिकोंके एक समान विधान बनाए और उसके पालनकी सब पर बाध्यता हो । जो भी भारतीय विधान और संविधानके विरुद्ध जाता है, उसे देशका नागरिक नहीं माना जा सकता । स्मरण रखना चाहिए कि प्रथम हम भारतीय हैं, उसके पश्चात अच्छे मानव हैं और तत्पश्चात उस समुदायका भाग आता है, जिससे हम सम्बन्ध रखते हैं ।

 

“जहां आज कोई भी सत्य बोलनेका साहस नहीं रखता, ऐसेमें न्यायमूर्ति एस.आर सेनने ऐसा प्रखर वक्तव्य और निर्णय सम्मान योग्य है और उनके पद ‘न्यायमूर्ति’को सार्थक करता है ! तथाकथित धर्मनिरपेक्षताने एक राष्ट्रके भीतर ही अनेक विभाजन कर दिए है । एक राष्ट्रमें मुसलमानोंके विधानका शरिया, बहुविवाह आदिका राष्ट्रके विधानसे विरोधाभास है ! इसके अतिरिक्त गौहत्या, धर्म परिवर्तन, लव जिहाद, हिन्दुओंको काफिर मानना, मस्जिदोंका विस्तार कर आधिपत्य स्थापितकर इस्लामिक राष्ट्र बनानेका प्रयास ये सब भारतको खोखला कर रहे हैं ! ऐसेमें सभी एकत्र हो चिन्तन करें और यथाशीघ्र भारतको हिन्दू राष्ट्र घोषित कर हिन्दू हितोंका रक्षण करें !” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : जागरण



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